________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रस्तावना
१७
रचना सूरत नगरके आदिनाथ मन्दिरमें हुई कही गयी है। गणितसारसंग्रह को एक प्रतिको दान प्रशस्तिमें कहा गया है कि वह प्रति आचार्य सुमतिकीर्तिके उपदेशसे हुंबड जातिके एक श्रावक द्वारा सं० १६१६ में ( गंधार शुभस्थानके आदिनाथ चैत्यालय ) में दी गयी थी । विद्यानन्दिके शिष्य श्रुतसागर कृत लक्ष्मण पंक्ति कथामें भी गंधार नगरका उल्लेख है । स्वयं विद्यानन्दि द्वारा प्रतिष्ठापित एक मेरुमूर्तिपर लेख है कि उसे गांधार वास्तव्य हुंबड-जातीय समस्त श्रीसंघने सं० १५१३ में प्रतिष्ठित करायी थी। इन उल्लेखोंसे ज्ञात होता है कि यह गंधारपुरी या तो सूरत नगरका ही नाम था, या उसके किसी एक भागका अथवा उसके समीपवर्ती किसी अन्य नगरका; और वहीं सं० १५१३ के लगभग विद्यानन्दि द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थकी रचना हुई थी।
आदर्श प्रति का परिचय
सुदर्शन चरितका प्रस्तुत संस्करण मेरे संग्रह को एक मात्र प्रति परसे किया गया है। यह इस कारण संभव हुआ है कि यह प्रति प्रायः शुद्ध है, तथा भाषा संस्कृत होने के कारण लिपिकारकृत वर्ण-मात्रादि सम्बन्धी अशुद्धियां सरलतासे शुद्ध की जा सकी हैं । प्रतिमें अनुनासिक वर्गों का प्रयोग अव्यवस्थित है, किन्तु उसे मूर्तिदेवी ग्रन्थमाला सम्बन्धो पाठसंशोधनके नियमोंके अनुसार रखनेका प्रयत्न किया गया है । आदर्श प्रति १२ इंच लम्बी व ५ इंच चौड़ी है । प्रत्येक पृष्ठपर ११ पंक्तियाँ, तथा प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० अक्षर है पत्र संख्या ५७ है । प्रत्येक पृष्ठके दाये-बाये तथा नीचे-ऊपर एक इंचका हासिया है, जिसपर गुजरातीमें टिप्पण लिखे गये हैं। ग्रन्थके आदिमें उं नमः सिद्धेभ्यः तथा अंतिम पुष्पिकाके पश्चात् ।।श्रुभंभवतु।। ।।।। |ग्रंथ संख्या श्लोक १३६२॥ ॥संवत् १५९१ वर्षे अखाड मासे शुक्ल पक्षे। इससे ज्ञात होता है कि प्रति संवत् १५९१ आषाढशुक्ल पक्षमें लिखी गयी थी।
For Private And Personal Use Only