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सुदर्शनचरितम् के विन्ध्य प्रदेशमें कौशलपुर । वहाँ राजा भूपाल व रानी वसुन्धरा । उनका पुत्र लोकपाल शूरवीर और बुद्धिमान (४१-४४ ) । एक बार राजाके सिंहद्वार पर रक्ष-रक्षकी पुकार । मन्त्रीने जानकारी दी कि वहां से दक्षिण दिशामें विन्ध्यगिरिपर व्याघ्र भील तथा कुरंगी भीलनीका निवास । व्याघ्रकी क्रूरता व प्रजा पीड़न । इस कारण प्रजाकी पुकार ( ४५-४९ ) । राजाका उस भीलको पराजित करने हेतु सेनापतिको आदेश । भील राज्य द्वारा सेनापतिका पराजय । राजपुत्र लोकपाल द्वारा व्याघ्र भीलका हनन । व्याघ्रका कूकर योनि में जन्म और फिर कुछ पुण्यके प्रभावसे चम्पामें नर जन्म और फिर मरकर उसी नगरमें सुभगगोपाल के रूप में जन्म व वृषभदास सेठ का ग्वाल होना ( ५०-६२ ), सुभग गोपालका वनमें मुनिदर्शन ( ६३.६७ ) । मुनिके आधार व गुणोंका विस्तारसे वर्णन ( ६८-८७ )। कठोर शीतसे अप्रभावित ध्यानमग्न मुनिको देखकर गोपके हृदयमें आदर भावनाका उदय । अग्नि जलाकर मुनिकी शीतबाधाको दूर करनेका प्रयत्न व रात्रिभर गुरुभक्तिमें तल्लीनता ( ८८-९४ )। प्रातःकाल सब कार्योंका साधन सप्ताक्षर महामन्त्र गोपको देकर मुनिराजका आकाश मार्गसे विहार (९४१०१)। गोपालका सदाकाल उस मन्त्रका उच्चारण व सेठ द्वारा पूछे जानेपर वृत्तान्त कथन । सेठ द्वारा उसकी धर्म बुद्धिकी प्रशंसा व उसके प्रति अधिक वात्सल्य भावसे व्यवहार ( १०१-१९१ )। एक बार गोपका वनमें गाय भैसोंको चराना । भैंसोंका नदी पार चले जाना, उनके लौटाने हेतु गोपालका नदी में प्रवेश व एक ठूठसे टकराकर पेट फटनेसे मृत्यु । मन्त्रके स्मरण सहित निदान करनेसे उसका सुदर्शनके रूपमें सेठ वृषभदासके यहाँ जन्म । मन्त्रका प्रभाव वर्णन (११२-१२५ ), कुरंगी नामक भीलनीका बनारसमें भैसके रूपमें जन्म फिर धोबीकी पुत्रीके रूपमें और वहां किंचित् पुण्यके प्रभावसे मरकर मनोरमाके रूपमें जन्म । धर्मका माहात्म्य ( १२५-१३२ )। अधिकार ९-द्वादश अनुप्रेक्षा वर्णन
मुनिराजसे अपना पूर्वभव सुनकर व संसारकी क्षणभंगुरताका विचार करते हुए अध्रुव, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा लोक, बोधि और धर्म इन बारह भावनाओंके स्वरूपका विचार (१-५१ )।
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