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प्रस्तावना
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२१
fusarat अस्वीकृति होनेपर रानी द्वारा सेठपर बलात्कार के दोषारोपणका प्रयत्न ( ६३-८७ ) । राजा द्वारा रानीकी बात सुनकर सेठको राजद्रोहो होनेका अपराधी ठहराना व श्मशान में ले जाकर प्राणघातका आदेश । ( ८८-९१ ) । राजसेवकोंका संशय किन्तु राजादेशकी अनिवार्यता के कारण सेठको श्मशान में ले जाना ( ९२-९८ ) । इस वार्तासि नगर में हाहाकार व मनोरमाका श्मशान में जाकर विलाप ( ९९ - ११४) । सुदर्शनका ध्यान में रहते हुए संसारकी अनित्यादि भावनाएँ ( ११५- १२० ) । सेठपर खड्ग प्रहार किये जानेके समय यक्षदेवके आसनका कम्पन | प्रहारोंका स्तम्भ तथा सेठपर पुष्पवृष्टि एवं नगरजनोंका हर्ष ( १२११२६ ) । राजा द्वारा अन्य सेवकोंका प्रेषण व उनके भी यक्ष द्वारा कीलित किये जानेपर सैन्य सहित स्वयं आगमन ( १२७ - १२९ ) । राज-सेना व यक्षदेव द्वारा निर्मित मायामयी सैन्यके बीच घोर संग्राम ( १३०-१३३) । राजाका पराजित होकर पलायन व यक्ष द्वारा उसका पीछा करना ( १३४ - १३७ ) । राजाका सुदर्शनकी शरण में आना और सेठ द्वारा उसकी रक्षा करना ( १३८-१४२ ) । यक्षकी सेना द्वारा सुदर्शनको पूजा कर यथास्थान गमन । शील प्रभाव वर्णन ( १४२-१४५ ) ।
अधिकार ८ - सुदर्शन व मनोरमाका पूर्वभव वर्णन
अभया रानीने सेठ सुदर्शनके पुण्य प्रभाव सुनकर भयभीत हो फांसी लगाकर आत्मघात कर लिया और मरकर पाटलिपुत्र में व्यन्तरी देवीके रूपमें उत्पन्न । पण्डिता चम्पापुरीसे भागकर पाटलिपुत्र में देवदत्त नामक वेश्या के पास पहुँची और उसे अपना सब वृत्तान्त सुनाया । देवदत्तने अपनी चातुरीसे सुदर्शनको अपने aaमें करनेकी प्रतिज्ञा की ( १-१० ), उधर राजा धात्रीवाहनने सच्ची बात जानकर पश्चात्ताप किया, सुदर्शन सेठसे क्षमा याचना की तथा आधा राज्य स्वीकार करने की प्रार्थना की ( ११-१७) । सुदर्शनने राजाको सम्बोधन किया । अपने दुःखको अपने ही कर्मोंका फल बतलाया तथा मुनिदीक्षा लेनेका अपना निश्चय प्रकट किया । ( १८-२३ ), सुदर्शन जिन मन्दिरमें गया । जिनेन्द्रकी पूजा व स्तुति की तथा विमलवाहन मुनिसे अपने पूर्वभव सुनने की इच्छा प्रकट की ( २४-४० ) । मुनिने उसके पूर्व भवका इस प्रकार वर्णन किया - भरत क्षेत्र
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