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सुदर्शनचरितम् सेठका अपने बन्धु-बान्धवोंसे पूछकर दीक्षाग्रहण (७४-८६), सेठानी जिनमती द्वारा आर्यिका-वतग्रहण तथा दोनोंको स्वर्ग-प्राप्ति (८७-९०), सुदर्शनका श्रेष्ठिपद पाकर सुखभोग और धर्माचरण (९१-१०१) । अधिकार ६-कपिलका प्रलोभन तथा रानी अभयमतिका व्यामोह ___ सुदर्शनका नगर-भ्रमण । कपिला द्वारा दर्शन व मोहोत्पत्ति (१-६), कपिल के बाहर जानेपर सखीको भेजकर कपिलके ज्वर-पोडित होनेके बहाने सुदर्शन सेठको अपने पास बुलवाना और उससे काम-क्रीड़ाको प्रार्थना करना (७-३२), सुर्शदनका चकित होना। एकनारी व्रतका स्मरण एवं नपुंसक होनेका बहाना बनाकर छुटकारा पाना (३३-४७) । बसन्त ऋतुका आगमन । राजाका वन-क्रीडा हेतु नागरिकों सहित वनगमन (४८-५४), रानीका सुदर्शनके रूपपर मोहित होना तथा कपिला द्वारा उसे पुरुषत्वहीन बतलाना (५५-५८)। रानीका मनोरमाको पुत्र सहित देखकर कपिलाके वचनोंका अविश्वास तथा सुदर्शनसे रमण करनेकी प्रतिज्ञा (५९-६९), राजभवन आकर रानीका व्याकुल होना। पंडिता धात्रीका उसे समझाना । रानीका हठ-आग्रह और पंडिता द्वारा विवश होकर उसको अभिलाषा पूर्ण करनेका वचन देना (७०-१०८)। अधिकार ७-अभयाकृत उपसर्ग निवारण व शील-प्रभाव वर्णन
सुदर्शन सेठका धर्म-पालन तथा अष्टमादि पर्वके दिनोंमें उपवास और रात्रिमें श्मशानमें योग-साधन (१-३), यह जानकर पंडिता द्वारा कुंभकारसे सात पुरुषाकार पुतलियोंका निर्माण तथा एक पुतलीको लेकर राजमहलके प्रवेशद्वारमें द्वारपालसे झगड़ा तथा उसपर रानीके व्रत भंग होनेका आरोप लगाकर उससे क्षमा याचना कराना और इसी प्रकार एक-एक पुतली लेकर समस्त द्वारपालों को वशीभूत कर लेना ( ४-२०)। अष्टमीके दिन पंडिताका श्मशानमें जाकर सुदर्शन सेठको लुभानेका प्रयत्न करना और उसके शीलमें अटल रहनेपर उसे बल पूर्वक रानोके शयनागारमें पहुंचाना (२१-६२) । अभयारानी द्वारा सुदर्शनको लुभानेका प्रयत्न किन्तु उसके प्रस्तावको अस्वीकार करने के कारण रानीका पश्चाताप । सेठको यथास्थान वापस भेजनेका विचार, किन्तु सूर्योदय समोप होनेसे
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