Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ 4: श्रमण, वर्ष 65, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2014 से निर्मित), 'उटाणि' या 'औष्ट्रिक' (ऊँट के बालों से निर्मित), मिगाईणाणि या मृगरोमज (मृग के रोम से बना ), 'कुतप या पेसणि' (चूहे आदि के रोम से), पेसलाणि या किटटू' (विदेशी पशुओ या अश्व के रोम से बने )। १८ निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि 'रालग' उत्तम प्रकार का ऊनी वस्त्र होता था जो मुख्यतः ओढ़ने के काम आता था। १९ मृग, भेड़, गौ, महिष और बकरे के चर्म के वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। सिन्ध देश के चर्मवस्त्र मूल्यवान होते थे । २० आचारांगसूत्र में रेशमी वस्त्र को 'भंगिय' कहा गया है। २१ यह वस्त्र वृक्ष के पत्तों पर पले विशेष प्रकार के कीड़ों के लार से बनता था। अनुयोगद्वार में अंडों से निर्मित रेशमी वस्त्रों को 'अंडज' और कीड़ों की लार से बने वस्त्रों को 'कीडज' कहा गया है। २२ आचारांगसूत्र में पाँच प्रकार के रेशमी वस्त्रों का उल्लेख आया है२३ पट्ट (पट्ट वृक्ष पर पले कीड़ों की लार से निर्मित), मलय (मलय देश में उत्पन्न वृक्षों के पत्तों पर पले कीड़ों की लार से निर्मित), अंशुक (दुकूल वृक्ष की भीतरी छाल के रेशों से निर्मित), चीनांशुक (चीन देश के ) और देशराग ( रंगे हुए वस्त्र )। २४ ज्ञाताधर्मकथांग में भी रेशमी वस्त्र का उल्लेख आया है। धारिणी देवी की शैया पर कसीदाकढ़ा हुआ 'क्षौमदुकूल' (रेशमी चादर ) बिछा हुआ था। २५ राजा बहुमूल्य रेशमी वस्त्रों को धारण भी करता था । आचारांगसूत्र में वर्णित है कि महावीर की दीक्षा के समय उन्हें एक लाख मूल्य वाला क्षौमवस्त्र पहनाया गया था। २६ काशी का रेशमी वस्त्र अधिक बहुमूल्य होता था। - आचारांगसूत्र से ज्ञात होता है कि उक्त वस्त्रों के अतिरिक्त सूक्ष्म, कोमल और बहुमूल्य वस्त्रों का निर्माण होता था, यथा- सहिण (सूक्ष्म व सौन्दर्यशाली), आय (बकरे की खाल से निर्मित), गज्जफल (स्फटिक के समान स्वच्छ), कोयव अर्थात् रोमदार कम्बल, पावारण ( लबादा में लपेटने वाले वस्त्र ) । वस्त्रों को केवल शरीर पर धारण करने के लिए ही नहीं प्रयोग किया जाता था। वह मच्छरदानी, परदे, तौलिये आदि के रूप में भी प्रयोग किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि धारिणी देवी की शैया मलक, नवत, कुशक्त, बिम्ब और सिंहकेसर नामक अस्तरणों से आच्छादित था

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