Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 49
________________ 42 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2014 4. जातिवाद से समाज में सौहार्द और सद्भावना समाप्त हो जाती है। विभिन्न जातियों के बीच द्वेष, कटुता, संघर्ष और वैमनस्य के भाव पनपने से राष्ट्रीय एकता कमजोर होती है। वर्तमान में जाति के आधार पर आरक्षण के माध्यम से नौकरियों में नियुक्ति होने के कारण अयोग्य व्यक्ति प्रशासनिक सेवा और राज्यसत्ता में आ जाते हैं। इससे योग्य और कुशल प्रतिभाओं को काम करने का मौका नहीं मिलता। अस्पृश्यता और जातिवाद के कारण खोखली होती जा रही समाज की नींव को पुनः सुदृढ़ बनाने के लिए सबमें जागरूकता का संचार तथा सामूहिक प्रयास की सघन अपेक्षा है। यद्यपि प्राचीन काल से चली आ रही जाति-व्यवस्था को मिटाना इतना सरल कार्य नहीं है लेकिन फिर भी इसको जड़मूल से उखाड़ने के लिए निम्न प्रयत्न किए जा सकते हैं - * नाम के आगे किसी भी जाति विशेष का प्रयोग न किया जाए। * कुछ ऐसे राष्ट्रीय उत्सव आयोजित हों, जिसे सब जाति के लोग मिलकर मनाएँ और आनन्द का अनुभव करें। * कुछ ऐसे सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन सामने आएँ, जिसमें सभी जाति के लोग सदस्य बन सकें । जाति के आधार पर होने वाले संगठनों को प्रश्रय न दिया जाए। * जाति के आधार पर वोट न देने का जनमत तैयार किया जाए । आचार्य तुलसी की दृष्टि में जातिवाद को समूल नष्ट करने के निम्न उपाय थे* शिक्षा का व्यापक प्रचार । * घृणा के संस्कारों को निरस्त कर मानव-मानव में एकत्व की अनुभूति कराना । * मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करना । * मानव मात्र के प्रति भातृभाव और सौहार्द का वातावरण निर्मित करना।

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