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__ पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार : 63 इस कार्यशाला का समापन समारोह १८ जनवरी २०१४ को हुआ। इसकी अध्यक्षता प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के अध्यक्ष प्रो० मो० नसीम अहमद ने की। प्रो० मो० नसीम अहमद ने कहा कि प्राकृत जैन आगमों की भाषा है। यह प्राचीनकाल में जनभाषा रही है। शोध की गुणवत्ता हेतु मूल ग्रन्थों पर शोध आवश्यक है। इधर के दिनों में महामहिम राष्ट्रपति, महामहिम राज्यपाल भी शोध की गुणवत्ता सुधारने पर बल दे रहे हैं। प्राकृत, संस्कृत, पालि में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है, जिसका उपयोग आवश्यक है। आज जो मानवीय मूल्यों का क्षरण हो रहा है प्राचीन साहित्य में निहित मूल्यों के उद्घाटन से मानवता का लाभ हो सता है। इस कार्यशाला में विषय का प्रस्तुतीकरण पावर प्वाइण्ट द्वारा किया गया जो प्रातिभागियों द्वारा बहुत सराहा गया। परीक्षा के बाद प्रथम तीन विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र एवं नगद पुरस्कार दिया गया। संदीप कुमार द्विवेदी, आशीष कुमार जैन एंव बबुआ नारायण मिश्र को क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यशाला में प्रस्तुत व्याख्यानों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी कार्यशाला के संयोजक डॉ० नवीन कुमार श्रीवास्तव ने दी। कार्यशाला निदेशक डॉ० अशोक कुमार सिंह ने कार्यशाला की शिक्षण पद्धति एवं लक्ष्य के विषय में जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन डॉ० नवीन कुमार श्रीवास्तव, अतिथियों का स्वागत डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन राजेश चौबे ने किया।