Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 77
________________ 70 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2014 Appendix- conjugation of verbs in Prakrit, conjugation of words utilized in the sutras, summary of the grammatical analysis of sutras. Right and the Good in Jaina Ethics by Prof. Kamal Chand Sogani, Jaina Vidya Samsthana, Digambar Jaina Atisaya Ksetra, Sri Mahaviraji, 322220 (Raj.), p-16 फ Indian Culture and Jainism by Dr. Kamal Chand Sogani, p-36. अपभ्रंश- पाण्डुलिपि चयनिका : सम्पा० डा० कमलचन्द सोगाणी- प्रथम सं० २००७, पृ० ११०, ( प्रमुख अपभ्रंश कृतियों महापुराण, सुदंसण चरिउ, पउमचरिउ, जंबूसामि चरिउ, करकण्डचरिउ), की पाण्डुलिपियों से चयनित अंश और उनका आधुनिक देवनागरी लिपि में रूपान्तरण) प्राकृत- पाण्डुलिपि चयनिका, सम्पा० डा० कमलचन्द सोगाणी, प्र०सं० २००६ पृ० ८२ " ( प्रमुख प्राकृत कृतियों भगवती आराधना, अष्ट पाहुड, दशवैकालिक, कुम्मापुत्तचरित्र और उत्तराध्ययन की पाण्डुलिपियों से चयनित अंश और उनका आधुनिक देवनागरी में रूपान्तरण) । भारतनी योगविद्या अने जीवन मां धर्म (पण्डित सुखलाल जीना नव हिन्दी लेखों नो सौ प्रथम गुजराती अनुवाद), अनु० डा० नगीन जे० शाह, सम्पा० जीतेन्द्र बी० शाह, लाल भाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद 2014, पृ0 40, 120 योग और धर्म भारतीय संस्कृति के प्राण सदृश हैं। योग और धर्म का मानव जीवन के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल संघवी जैन विद्या के महान मनीषी रहे हैं। उन्होंने जैन विद्या से सम्बन्धित अनेक पक्षों पर चिन्तन किया और लेखनी चलाई। धर्म और योग से सम्बन्धित उनके लेखों का गुजराती अनुवाद इस पुस्तक में सगृहीत हैं- धर्म बीज और उनका विकास, धर्म

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