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पुस्तक समीक्षा : 69 अपभ्रंश-व्याकरण- डा० कमलचन्द सोगाणी, प्र०सं० २००७, पृ० ५४ (सन्धि, समास और कारक तथा उनके अपभ्रंश उदाहरण) प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ (भाग-१) डा० कमलचन्द सोगाणी, प्र०सं० १९९७, पृ० ४, १३४, ५६, अव्यय, विशेषण, वर्तमान कृदन्त, भूतकालिक कृदन्त, पर आधारित अभ्यास और परिशिष्ट के रूप में अनुवाद आदि।) अपभ्रंश अभ्यास सौरभ, डा० कमलचन्द सोगाणी, द्वि० सं० २०१२, पृ० १२, १८४ (आई०एस०बी०एन० ९७८-८१-९२१२७६-७-५) (अपभ्रंश रचना सौरभ में बताये गये नियमों के आधार पर ८० पाठों में अपभ्रंश भाषा का अभ्यास) अपभ्रंश काव्य सौरभ- डा० कमलचन्द सोगाणी, द्वि०सं० २००७, पृ० १० ४१६, (प्रमुख अपभ्रंश कृतियों पउमचरिउ, महापुराण, जम्बूसामिचरिउ, सुदंसण चरिउ, करकण्डु चरिउ, धण्णकुमार चरिउ, हेमचन्द्र के दोहे, परमात्म प्रकाश, पाहुड दोहा, सावयधम्म दोहा, से संकलित अंशों का हिन्दी अनुवाद व्याकरणिक, विश्लेषण एवं शब्दार्थ तथा परिशिष्ट के रूप में कवियों का परिचय)
Advanced Apabhramsa-Grammar (Two Parts) Dr. Kamal Chand Sogani, Smt. Shakuntala Jain Part-1 First Edition 2010, p. 13, 108. Part-1 [Method of analysis of sutras, Declension of nouns, pronouns, Declensional forms of nouns and pronouns, rules of combination utilized in the sutras, summary of the grammatical analysis of sutras,] Part-II, First ed. 2010, P. 8,118.
[Introduction of Verb-sutras, Prakrit verbs and participles, Sauraseni verbs and participles, Apabhramsa verbs and participles]