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62 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 प्रो० मिश्र ने कहा कि प्रत्येक भाषा में प्राकृत शब्द विद्यमान है। प्रत्येक भाषा संस्कृत एवं प्राकृत द्विविध रूप से ही प्रचलित हो पाती है। अपने उद्बोधन में प्रो० मिश्र ने कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् में उपलब्ध प्राकृत के विभन्न शब्दों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास जैसे सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान ने भी संस्कृत के साथ प्राकृत शब्दों का प्रयोग किया है। इस प्रकार संस्कृत के महाकवियों द्वारा निर्द्वन्द्व रूप से किया गया प्राकृत शब्दों का प्रयोग प्राकृत भाषा की महत्ता को दर्शाता है। प्रो० मिश्र ने कहा कि अनुवाद की प्रचुर उपलब्धता के नाते हमारी प्राच्य भाषाएँ विलुप्त होती जा रही हैं। प्राकृत भाषा में अध्येता की गति के लिए इसके इतिहास को जानना अत्यन्त आवश्यक है।
कार्यशाला में प्रतिभागियों की संख्या ५० थी। इसमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के दर्शन, संस्कृत, हिन्दी, पालि एवं इतिहास विषयों के पीएच०डी० उपाधि प्राप्त एवं शोध छात्र-छात्राएँ भाग लिये। इस १५ दिवसीय कार्यशाला में लगभग ४५ व्याख्यान एवं १४ विशिष्ट व्याख्यान हुए। ।।