Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 43
________________ 36 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 दिगम्बर स्थलों पर छठी-सातवीं शती ई० में ही बाहुबली का निरूपण प्रारंभ हो गया जिसके उदाहरण बादामी और अयहोल में है। बादामी की मूर्ति में बाहुबली निर्वस्त्र और कार्योत्सर्ग-मुद्रा में पद्म पर खड़े हैं। केश पीछे की ओर संवारे गये हैं। हाथों और पैरों में माधवी लिपटी है। तपस्यारत बाहुबली के समीप ही वाल्मीक निर्वस्त्र और कायोत्सर्ग-मद्रा में पद्म पर खड़े हैं। केश पीछे की ओर संवारे गये हैं। हाथों और पैरों में माधवी लिपटी है। तपस्यारत बाहुबली के समीप ही वाल्मीक से निकलते दो सर्पो को दिखलाया गया है। समीप ही दो पुरुषों और दो उपासकों की आकृतियाँ भी बनी हैं। अयहोल के उदाहरण में भी लगभग यही लक्षण द्रष्टव्य हैं। इसमें बाहुबली के दोनों पार्थों में सर्वाभूषित दो स्त्री आकृतियाँ बनीं हैं, जो विद्यारियों की आकृतियां हैं। दिगम्बर स्थलों पर इनका नियमित अंकन हुआ है। अयहोल की मूर्ति में ऊपर की ओर वृक्ष और उड्डीयमान गन्धर्व आदि का अंकन हुआ है। बाहुबली की केश रचना जटा के रूप में प्रदर्शित है और कुछ लटें कन्धों पर भी फैली हैं। बाहुबली की मुखाकृति और अर्ध-निमीलित नेत्र उनकी चिन्तनशील मुद्रा को अभिव्यक्त करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि दिगम्बर शिल्प परम्परा में सातवीं शती ई० तक बाहुबली की लाक्षणिक विशेषताएं नियत हो गयी थीं। परवर्ती काल की मूर्तियों में इन्हीं में कुछ विकास दृष्टिगत होता है। इनमें लता वल्लरियों के साथ बाहुबली के शरीर पर सर्प, वृश्चिक, छिपकली आदि का अंकन हुआ है। बाहुबली की दिगम्बर परम्परा की अन्य मूर्तियाँ एलोरा (लगभग २० की संख्या में), कर्नाटक (प्रिसं ऑफ वेल्स संग्रहालय, मुम्बई, कास्य, नवीं शती ई०), श्रवणबेलगोल (९८३ ई०), कारकल-वेणूर (१४वीं-१६वीं शती ई०), प्रभास (जूनागढ़ संग्राहलय), देवगढ़ खजुराहो (पार्श्वनाथ मन्दिर, १९५०-७० ई०), विल्लहरी (जबलपुर, म० प्र० ११वीं शती ई०), मथुरा (शासकीय संग्रहालय, लखनऊ, क्रमांक सं० ९४०, १०वीं शती ई०) सिरोनखुर्द (ललितपुर, उ० प्र०, ११वीं शती ई०), चन्देरी (ललितपुर, १६वीं शती ई०) एवं १४वीं-१५वीं शती ई० की ग्वालियर (उ०प्र०) स्थित जैन गुफा की मूर्तियां इसकी उदाहरण हैं। एलोरा, श्रवणबेलगोल, कारकल, वेणूर की मूर्तियों में समीप ही वाल्मीक से निकलते सर्पो का उकेरन हुआ है। ये विशेषताएं बाहुबली की गहन साधना के भाव को मूर्तमान करती हैं। श्रवणबेलगोल की ५७ फीट ऊंची गोम्मटेश्वर बाहुबली की महाप्रमाण शैलोत्कीर्ण मूर्ति गहन साधना और त्याग की जीवन्त प्रतीक है। यह मूर्ति जैनकला के साथ ही भारतीय कला का अप्रतिम उदाहरण भी है।

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