Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ जैन कला एवं परम्परा मे बाहुबली: आदर्श एवं यथार्थ की पृष्ठभूमि : 37 खजुराहो एवं देवगढ़ की नवीं से तेरहवीं शती ई० के मध्य की मूर्तियों में बाहुबली के साथ कई नवीन और परम्परा में सर्वथा अवर्णित विशेषताएं देखने को मिलती हैं। इनमें बाहुबली को तीर्थंकरों के समान प्रतिष्ठा प्रदान करने का भाव स्पष्ट देखा जा सकता है। ज्ञातव्य है कि तीर्थंकरों को जैन देवकुल में सर्वाधिक महत्ता प्राप्त है जिन्हें देवाधिदेव भी कहा गया है। अतः जब भी जैन देवपरिवार के किसी देवता की प्रतिष्ठा में वृद्धि की गयी तो उन्हें तीर्थंकरों के निकट लाने का प्रयास किया गया। देवगढ़ में लगभग नवीं शती ई० से तेरहवीं शती ई० के मध्य की लगभग छः बाहुबली मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। देवगढ़ की बाहुबली मूर्तियां उत्तर भारत की बाहुबली मूर्तियों में संख्या और लक्षण दोनों ही दृष्टियों से विशिष्ट हैं। इनमें बाहुबली कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं और उनके शरीर से लता-वल्लरियां लिपटी हुई हैं। देवगढ़ से प्राप्त मूर्तियों में बाहुबली के साथ चामरधारी सेवकों, सिंहासन, त्रिछत्र, प्रभामण्डल, देवदुन्दुभि जैसे प्रातिहार्यों का अंकन इस बात का संकेत देता है कि तीर्थकर न होते हुए भी गहन साधना और त्याग की प्रतिमूर्ति बाहुबली को तीर्थंकरों के समान प्रतिष्ठा मिली, जिसकी पराकाष्ठा १२वीं-१३वीं शती ई० की मन्दिर संख्या ११ में सुरक्षित बाहबली मूर्ति में देखने को मिलती है। इसमें सामान्य प्रातिहार्यों के साथ ही बाहुबली के साथ तीर्थंकर मूर्तियों के समान पीठिका पर यक्ष-यक्षी का भी निरूपण हुआ है। यक्ष-यक्षी से युक्त बाहुबली मूर्ति का एक अन्य उदाहरण (१२वीं-१३वीं शती ई०) खजुराहो के साहू शान्ति प्रसाद जैन संग्रहालय में सुरक्षित है। इस प्रकार बाहुबली की मूर्तियों के सन्दर्भ में देवगढ़ में कई अभिनव प्रयोग हुए जो शास्त्र समर्थित न होते हुए भी शास्त्र विरुद्ध नहीं थे और जिनका उद्देश्य बाहुबली के माध्यम से मनुष्य मात्र के समक्ष सम्भवतः एक आदर्श प्रस्तुत करना था। यह सर्वथा सत्य है कि हर कोई तीर्थंकर नहीं हो सकता क्योंकि वह पूर्व नियत है, पर बाहुबली जैसा साधक होकर कैवल्य और निर्वाण अवश्य प्राप्त कर सकता है। ज्ञातव्य है कि बाहुबली जैन परम्परा में इस पृथ्वी के पहले साधारण मनुष्य हैं, जिन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ था। त्याग, साधना और अहिंसा जैसे आदर्श युक्त कठिन मार्ग पर चलकर केवल ज्ञान प्राप्त करने वाले बाहुबली को जनमानस में तीर्थंकरों के समान प्रतिष्ठित किया गया। देवगढ़ के मन्दिर संख्या २ की एक मूर्ति में बाहुबली की दो तीर्थंकरों (शीतलनाथ एवं

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80