Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 17
________________ 10 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1/जनवरी-मार्च 2014 सुई, कैंची आदि। सूत्रकृतांग में भी सुई और धागे (सुई/सुत्तग) द्वारा कपड़े सिलने का उल्लेख आया है।५ ये सुइयां बांस (वेणु), पशुओं के सींग तथा लोहे द्वारा निर्मित की जाती थीं तथा सिलाई करने वाले दर्जी उसका उपयोग करते थे।८६ वास्तु उद्योग : पुराकालीन भारत में वास्तु उद्योग अपनी पराकाष्ठा तक विकसित था। नगरों की संरचना, दुर्गीकरण, प्राकार, परिखा आदि वस्तु उद्योग के उत्कर्ष के द्योतक हैं। प्रश्नव्याकरणसूत्र में वास्तु विशेषज्ञों का वर्णन है जो राजमहल, भवन, तृणकुटीर, साधारण गृह, गुफा, बाजार, देवालय, सभामण्डप, प्याऊ, आश्रम, भूमिगृह, पुष्करिणी स्तूप आदि बनाते थे।८७ उद्योगों की उन्नत स्थिति अंग आगम काल में आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण थी। उद्योग और कृषि में बेहतर समन्वय पाया जाता था। उद्योगों ने ग्रामीण व नगरीय व्यवस्था के मध्य भी समन्वय का कार्य किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन अंग ग्रन्थों में प्राप्त उल्लेखों से तत्कालीन उद्योगों की स्थिति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। समाज के वस्त्र, धातु, स्वर्ण एवं रत्न, भाण्ड, काष्ठ, तेल, खाण्ड, प्रसाधन, चित्र, रंग, मद्य, सिलाई आदि उद्योग उत्यन्त विकसित थे। सन्दर्भ - दशवैकालिकचूर्णि, पृ० १०२ आवश्यकचूर्णि, १/१५६ प्रश्नव्याकरण, ५/५ कल्पसूत्र, ६३ कल्पसूत्र, ६३ उपासकदशांगसूत्र १/३८; आवश्यकचूर्णि, भाग-२, पृ० २९६ निशीथचूर्णि, भाग-२, गाथा, ४४१९ प्रश्नव्याकरण, ४/४ दशवैकालिकसूत्र, ९/१३, १४ ; अंतकृद्दशांगसूत्र, ३/२; ज्ञाताधर्मकथांग, १/९९ उत्तराध्ययनसूत्र- १९/६६, ६७; निशीथचूर्णि भाग-२, पृ० ४३३;

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