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30 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2014
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन अभिलेख भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के जीवन्त स्रोत हैं। ये न केवल मूलस्रोत के रूप में ऐतिहासिक सत्यों को उद्घाटित करने में समर्थ हैं, अपितु साहित्यिक स्रोतों के पूरक साक्ष्य के रूप में इतिहास-लेखन में अत्यन्त सहायक हैं।
संदर्भ :
१.
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एपिग्राफिया इण्डिका, भाग २०, पृ० ६६ एवं आगे “नुडिदुदनारोलं नुडिदु तप्पिदोडं जिनशासनक्कोडम् । बडदडमन्य नारिगेरेदट्टिदंडं मधुमांस सेवे गेय ।। दडमकुलीनरप्पवर कोलकोडेयादोडमर्थिगर्थमम् । कुडदोडमोहवाङ्गणदोलोडिदंड किडुगुं कुर्लाक्रमम् ।।"
जैन शिलालेख संग्रह, सम्पा० विजयमूर्ति, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, बाम्बे, १९५२, भाग द्वितीय, पृ० ४१३
वही भाग प्रथम, सम्पा० हीरालाल जैन, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, मुम्बई १९२८, पृ० १२३ एवं आगे
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वही भाग प्रथम, पृ० १२३
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वही भाग पंचम, पृ० ४
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विस्तार के लिए देंखे :- स्किज्म इन जैन संघ, अरुण प्रताप सिंह, भारती, प्रा० भा० इति० एवं पुरा० विभाग, बी०एच०यू० वाराणसी, भाग ३५, पृ० ४३-४९ इण्डियन एण्टिक्वेरी, भाग ७, पृ० ३७-३८
कल्पसूत्र, ६ प्राकृत भारती अकादमी, राजस्थान, द्वितीय संस्करण, १९८४ पृ० २८७ - ३०४; विस्तार के लिए देखें- जैन रिलिजन एण्ड रायल डायनस्टीज आफ नार्थ इण्डिया, भाग प्रथम, अरुण प्रताप सिंह, बी० एल० मीडिया सोल्यूसंस, नई दिल्ली, २०१० पृ० ७०-७३
ए लिस्ट आफ ब्राह्मी इन्सिक्रिप्शंस, बर्लिन, एच० ल्यूडर्स, इण्डोलोजिकल बुक हाउस, वाराणसी, १९७३, संख्या ४२, ५८, ११६ आदि ।
वही, सं० १७, २०, २२ आदि
वही, सं० २१, ७६ आदि
वही, सं० २४
वही, सं० १०१
एपिग्राफिया इण्डिका, भाग- द्वितीय, पृ० २०४, ल्यूडर्स, सं० ४७
"This shows that by the middle of the second centruy A.D., this stupa has become so ancient that the facts about its origin were