Book Title: Sramana 2014 01
Author(s): Ashokkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 40
________________ जैन कला एवं परम्परा मे बाहुबली: आदर्श एवं यथार्थ की पृष्ठभूमि : 33 सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। साधना, अपरिग्रह और अहिंसा का श्रेयस मार्ग जैन परम्परा एवं कला में सर्वदा दृढ़ता से व्यक्त हुआ है। इसी कारण तीर्थंकर न होते हुए भी गहनतम साधना और त्याग के प्रतीक के रूप में बाहुबली पूजित हुए तथा उन्हें तीर्थंकरों के समान प्रतिष्ठा प्रदान की गयी। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि विशालतम प्राचीन जैन मूर्ति भी किसी तीर्थंकर के स्थान पर गोम्मटेश्वर बाहुबली (५७ फीट) की बनी, जो श्रवणबेलगोल (कर्नाटक, ९८३ ई०) में है और गोम्मटेश्वर बाहुबली के नाम से विख्यात है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ एवं सुनन्दा के पुत्र बाहुबली को दक्षिण भारतीय परम्परा में 'गोम्मट या गोम्मटेश्वर' नाम से जाना जाता है। कारकल (कर्नाटक) की बाहबली के मर्ति-लेख में इन्हें गोम्मट जिनपति तक कहा गया है। अग्रज भरत चक्रवर्ती पर विजय के अन्तिम क्षणों में सर्वस्व त्यागने का निर्णय लेकर साधना के मार्ग पर चलने वाले बाहुबली ने जो आदर्श स्थापित किया उसी कारण जैन कला परम्परा में श्रद्धा को शीर्षस्थ स्थान प्रदान किया गया। श्वेताम्बर तथा दिगम्बर परम्परा के विभिन्न ग्रन्थों में बाहुबली के जीवन एवं तपश्चर्या के विस्तृत उल्लेख उपलब्ध हैं। यद्यपि प्रारम्भिक उल्लेख तीसरी शती ई० के विमलसूरि कृत पउमचरियं में है तथापि बाहुबली की मूर्तियों का उत्कीर्णन छठी-सातवीं शती ई० में प्रारम्भ हुआ, जिसके उदाहरण कर्नाटक में बादामी और अयहोल से मिल हैं। पउमचरियं के बाद वसुदेवहिण्डी (छठी शती ई०), पद्मपुराण (सातवीं शती ई०), हरिवंशपुराण (आठवीं शती ई०), चउपन्नमहापुरुषचरिय (८६८ ई०), आदिपुराण (नवीं शती ई०) एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (१२वीं शती ई०) जैसे ग्रन्थों में बाहुबली से सम्बन्धित विस्तृत उल्लेख प्राप्त होते हैं। ऋषभनाथ के सौ पुत्रों और दो पुत्रियों में भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े थे। ऋषभनाथ के दीक्षा ग्रहण करने के बाद राज्य पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए भरत और बाहुबली के मध्य युद्ध हुआ। युद्ध की विभीषिका और उसमें होने वाले नरसंहार की पूर्वकल्पना करते हुए बाहुबली ने सेनाओं के युद्ध के स्थान पर भरत से शस्त्रविहीन द्वन्द्व युद्ध का प्रस्ताव किया, इसे भरत ने भी स्वीकार कर लिया। इस द्वन्द्व युद्ध में भरत हर सम्भव यत्न के बाद भी बाहुबली पर नियन्त्रण नहीं कर सके। तब निराशा में उन्होंने अपने वचन से विमुख होकर देवताओं से प्राप्त काल-चक्र से बाहुबली पर प्रहार किया। भारत की

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