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जैन अभिलेखों का वैशिष्ट्य : 29
श्रियै
भवन्तु वो देवा, ब्रह्म श्रीधरशंकरः ।
सदा वीरागवन्तो ये जिना जगति विश्रुताः । । २०
महाराज आल्हणदेव भी धर्मसहिष्णु नरेश थे। नाडोल से प्राप्त एक अभिलेख में महाराज द्वारा सूर्य एवं ईषाण (शिव) की पूजा के उपरान्त ब्राह्मणों एवं गुरुओं के एक जिन मन्दिर को प्रतिमाह पाँच द्रम्म देने का आदेश है । २१ स्पष्टतः जैन अभिलेख भारतीय धर्म के मूलगुण साहिष्णुता को पूरी निष्ठा के साथ व्यक्त करते हैं तथा सामाजिक कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हैं। सरस्वती की मूर्ति प्रतिष्ठापना के समय किसी सम्प्रदाय विशेष का नाम लिए बिना सब लोगों के कल्याण की कामना की गई है। सबको कल्याण की कामना से बढ़कर सामाजिक आदर्श की स्थिति और क्या हो सकती है। २२
प्राचीनतम अभिलेख के प्रतिनिधि : जैन अभिलेख सम्भवतः प्राचीनतम भारतीय अभिलेख का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजस्थान के अजमेर जिले के बालग्राम के भिलोट माता मंदिर से प्राप्त अभिलेख विचारणीय हैं २३
वीर (१) य भगव (ते)
.चतुरासिति व (से)
ये सा (लि) मालिनि......
.. रं नि (वि), माझिमिके.......
इस अभिलेख के प्रथम पंक्ति में 'वीराय भगवते' है जिसका समीकरण वीर भगवान अर्थात् महावीर से किया गया है। इसके व्यंजनों पर लगी हुई मात्राओं के आधार पर पुराविदों ने इसे काफी प्राचीन माना है। प्रसिद्ध पुराविद आर०आर० हैल्दर का मानना है कि बड़ी ई की मात्रा न तो अशोक के अभिलेखों में है और न कालान्तर के अभिलेखों में प्राप्त होती है। महावीर की परम्परागत तिथि ५२७ ईसा पूर्व है, जबकि कुछ आधुनिक विद्वान विभिन्न स्रोतों के आधार पर उनकी निर्वाण तिथि ४८६ ई० पू० सिद्ध करते हैं। संदर्भों के आधार पर यदि इस अभिलेख को हम महावीर निर्वाण के ८४ वर्ष अनन्तर उत्कीर्ण मानें तो इसका समय पाँचवी शताब्दी ई०पू० का अन्तिम काल अथवा चतुर्थ शताब्दी ई० पू० का प्रारम्भिक काल निर्मित होता है। इससे यह प्राचीनतर सिद्ध होगा । २४