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4 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013 के रंगमण्डप के भीतरी भाग में संगमरमर का तथा रंगमण्डप के तीन ओर के प्रवेशद्वारों के निर्माणों में काष्ठ का और मन्दिर के अन्य भागों (स्तम्भों, शिखरों, बाह्यभित्तियों) के निर्माण में भरतपुर के समीप से प्राप्त गुलाबी रंग के बलुए पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस मन्दिर का वास्तु गुजरात के सोमपुरा परिवार ने तैयार किया था। यह परिवार मन्दिर और मूर्तिनिर्माण से पिछली कई शताब्दियों से जुड़े हैं। इसी कारण गुजरात और राजस्थान के कुम्भारिया, दिलवाड़ा, तारंगा, राणकपुर, जैसे श्वेताम्बर मन्दिरों के स्थापत्य, मूर्तिशिल्प और प्रतिमालक्षण का प्रभाव काशी के प्रस्तुत पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पर स्पष्टत: देखा जा सकता है। यह मन्दिर एक ओर प्राचीन परम्परा की निरन्तरता और वर्तमान में उसके महत्त्व को स्थापित करता है, तो दूसरी ओर काशी में पश्चिम भारतीय शैली और लक्षणों की उपस्थिति का भी साक्षी है। पश्चिम भारत के प्राचीन श्वेताम्बर मन्दिरों के समान ही पार्श्वनाथ मन्दिर के रंगमण्डप, और त्रिक्मण्डप के स्तम्भों एवं प्रवेशद्वारों पर श्वेताम्बर जैन देवियों का अनेकत्र रूपायन हुआ है। इन देवियों में जैन यक्षियां भी हैं, महाविद्याएं भी हैं और सरस्वती (वीणा, पुस्तक,और पद्मधारिणी और कभी-कभी मयूरवाहनी) तथा लक्ष्मी जैसी देवियां भी हैं। इनकी भाव भंगिमा, अलंकरण सज्जा, रथिका संयोजन और कभी-कभी कुछ विशिष्ट मूर्तस्वरूप भी जैसे मंजीरा बजाती हुईं नृत्यशैली में बनी चतुर्भुजा देवियां, कुम्भारिया एवं दिलवाड़ा के जैन मन्दिरों का स्मरण कराती हैं। यक्षियों में मुख्यत: चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती और सिद्धायका की मूर्तियां उकेरी हैं। यक्षियों एवं अन्य देवियों के निरूपण में श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थ निर्वाणकलिका (पादलिप्तसूरिकृत १०वीं-११वीं शती ई.), त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित (हेमचन्द्रकृत १२वीं शती ई.), मंत्राधिराजकल्प (सागरचन्द्रसूरिकृत ११वीं-१२वीं शती ई.) तथा आचार दिनकर (वर्द्धमानसूरिकृत १४१२ ई.) जैसे ग्रन्थों का पालन किया गया है। यक्षियों में पद्मावती की सर्वाधिक मूर्तियां हैं क्योंकि पद्मावती पार्श्वनाथ की यक्षी है और मन्दिर भी पार्श्वनाथ को समर्पित है। यक्षियों एवं अन्य देवियों को द्विभंग, त्रिभंग, अतिभंग में और कभी-कभी ललितासीन भी दिखाया गया है। सभी उदाहरणों में देवियां चतुर्भुजा हैं और सामान्यत: उनके साथ वाहन भी दिखाये गये हैं। भेलूपुर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में संवत् १०४० (९८३ई.) के लेख से युक्त ऋषभनाथ की एक विशाल ध्यानस्थ मूर्ति सुरक्षित है जिसमें वृषभ लांछन सिंहासन के मध्य उत्कीर्ण है। मूर्ति की पीठिका पर नवग्रहों का भी अंकन हुआ है। इस मूर्ति का वैशिष्ट्य सिंहासन के दोनों छोरों पर यक्ष आकृति के साथ तीन अन्य