Book Title: Sramana 2013 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 43
________________ 36 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी - मार्च 2013 का भी श्रेय प्राप्त है।२२ १२५८-५९ई० के अकाल के दौरान, भारत के अनेक भाग प्रभावित थे, अनाज के मूल्य में वृद्धि हो गयी थी और राजकीय भंडार खाली थे । उस समय जगडूशाह ने लोगों को मुफ्त अनाज वितरित किये थे । जगडूशाह ने अणहिलवाड़ के राजा विशालदेव को ४,००,००० मन; सिंध के राजा को ६,००,००० मन; मेवाड़ के राजा को १६,००,००० मन; मालवा के राजा को ९,००,००० मन; बनारस के राजा को १६,००,००० मन; और देहली के सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद को १०,५०,००० मन अनाज का दानं दिया था। २३ कच्छ के जैनमुनि देवसूरि ने भविष्य में पुनः अकाल आने की भविष्यवाणी की और जगडूशाह से कहा कि इस तरह की आपदा से निटपने हेतु अनाज को संचित करें जिससे जनता की सहायता की जा सके। २४ इस उदारता से उसे इतनी प्रसिद्धि मिली कि १२५८५९ ई० का अकाल जगडूशाह अकाल कहा जाने लगा । २५ कहा जाता है कि वह शत्रुन्जय नामक जैन तीर्थ स्थल पर भी गया था। उसने अनेक जैन धर्मशालाओं का निर्माण कराया और अनेक जैन मन्दिरों के पुनर्निर्माण पर धन व्यय किया था। २६ जगडूशाह की मृत्यु पोरबन्दर के निकट झुण्डाला (Jhundala) में हो गयी जहाँ उसकी स्मारकशिला बरदाई ब्राह्मिन (Bardai Brahmin) में पायी जाती है। २७ जैन परम्परा के अनुसार १३२१ई० में गुजरात में एक बार फिर भीषण अकाल पड़ा। तब भीम नामक एक व्यापारी ने एक बड़ी रकम दान में दी थी। इसी व्यापारी ने भीमसिंह प्रासाद नामक जैन मंदिर का, जो आबू पर्वत पर स्थित है, संभवतः निर्माण करवाया था।२८ इस अवधि में मध्य प्रदेश में भी जैन समुदाय उन्नत दशा में था । माण्डू के शासकों के राज्यकाल में न केवल जैन श्रेष्ठी भारी मात्रा में बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार कर रहे थे, अपितु महाजनी (Banking) का भी व्यवसाय करते हुए वित्तीय आपदाओं से ग्रस्त राजपरिवार के सदस्यों को यथोचित आर्थिक सहायता प्रदान करने के साथसाथ, शासन एवं प्रशासन के उच्च पदों पर आसीन भी थे। श्रेष्ठी तथा व्यापारी, संघपति बड़े पैमाने पर संघयात्राएं सम्पन्न कर रहे थे। झांझण कुमार ने १३४८ ई० में लाखों लोगों के साथ संघबद्ध होकर तीर्थयात्रा की थी । २९ इस संघ के संरक्षण की व्यवस्था राजाओं द्वारा की गयी थी। संघ यात्रा में सम्मिलित होने वालों को उत्तम वस्त्र, अश्व तथा मार्ग-व्यय आदि भेंट दी गयी थी। झांझण कुमार के छः पुत्र चाहड़, देहड़, पद्मसिंह, आल्हू और पाल्हू ने भी संघ यात्राएं की थीं। पाल्हू ने जिनचंद्रसूरी की अध्यक्षता में श्री अर्बुद और जीरापल्ली तीर्थ संघ यात्रा पर प्रचुर धन व्यय किया था। अन्य संघपति, जयता, जावड़, सूरा-सेठ, वीरा सेठ, संग्राम सिंह सोनी आदि थे, जो माण्डव (माण्ड) के निवासी थे। इस काल में संघ यात्रा कष्ट साध्य और

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