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88 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013 बौद्ध प्रमाणमीमांसा (प्रत्यक्ष के विशेष संदर्भ में) लेखक- डॉ. हरिशंकर सिंह (सेवानिवृत्त आचार्य भागलपुर विश्वविद्यालय), प्रकाशक- वेदांशी पब्लिकेशन, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.), पृष्ठ-४८२, मूल्य-५०१रुपये। बौद्ध-प्रमाणमीमांसा डॉ. हरिशंकर सिंह के बारह वर्षों के अथक प्रयास से शोध प्रबन्ध के रूप में ई. १९८५ में तैयार की गयी थी जिसपर भागलपुर विश्वविद्यालय से आपको पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुयी थी। इसका प्रकाशन सन् २०११ में हो चुका था। यह कृति महामण्डलेश्वर श्री गुरु शरणानन्द जी महाराज को समर्पित है जो लेखक के दीक्षा गुरु हैं बौद्ध-दर्शन के प्रमाण के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए जिज्ञासुओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है। बौद्ध-दर्शन के विभिन्न सम्प्रदायों में प्रमाण के विषय में जो अवधारणायें हैं उनका उल्लेख करते हुए प्रत्यक्ष के ऊपर विशेष विचार किया गया है। लेखक ने ६० प्रश्नों की टिप्पणी अंकित की है जो उनके विस्तृत अध्ययन की परिचायक है। पुस्तक के मुख्यपृष्ठ पर जो द्वादशांग प्रतीत्यसमुत्पाद का चित्र अंकित किया गया है वह विषय के सर्वथा अनुरूप है। आपने चतुर्थ अध्याय में जैन दार्शनिक सुमति तथा अकलंक के प्रत्यक्ष के कल्पनापोढत्व परक का निराकरण किया है। किए गए आरोपों को बौद्ध सिद्धान्त की दृष्टि में रखकर बौद्धेतर भारतीय दार्शनिकों के साथ ज्ञान के साकार तथा निराकार होने का विचार करते हुए लेखक का झुकाव साकारवाद की ओर अधिक है। इससे लगता है कि लेखक के दार्शनिक चिन्तन में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दो मूर्धन्य आचार्यों प्रो. टी. आर. वी. मूर्ति और प्रो. सी. डी. शर्मा के विज्ञानवादी (Idealist) धारा का परोक्ष प्रभाव है। हम लेखक के सराहनीय प्रयत्न का साधुवाद करते हैं और कामना करते हैं कि इसी तरह के गम्भीर विषयों पर आपकी लेखनी निरन्तर चलती रहे।
प्रो. अरविन्द कुमार राय
दर्शन एवं धर्म विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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