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१२वीं से १५वीं सदी के मध्य जैन .... : 35 राजस्थान में जैन धर्मावलम्बियों की संख्या अधिक थी। धनिक वर्ग द्वारा इस सम्प्रदाय के लोगों को पर्याप्त आर्थिक सहायता मिलती थी। जैन सम्प्रदाय के लोग जिन पर्वतों को पवित्र मानते हैं, उनमें आब, पालिताणा और गिरनार उल्लेखनीय हैं।१३ पंजाब से लेकर समुद्र के किनारे के सभी प्रसिद्ध नगरों में जैन धर्म को मानने वाले व्यवसायी रहते थे। उदयपुर और उसके दूसरे नगरों में प्रसिद्ध कर्मचारी जैन समुदाय के लोग थे। राजस्थान में मेवाड़ के गुहिलोत वंश द्वारा भी जैन धर्म को संरक्षण मिला हुआ था। चित्तौड़ में निर्मित पार्श्वनाथ का स्तम्भ इसकी पुष्टि करता है। मेवाड़ के अनेक मंत्री और राज्य के अधिकांश कर्मचारी जैनी थे।५ राजपुताना के अन्य राज्यों के शासक भी जैन सम्प्रदाय के पोषक थे। आचार्य जिनचंद्र सूरी ने ही मारवाड़ राजा सूर्यदेव खीच (Suryadeo Khich) के पुत्रों डुगड़ (Dugar) और सुगड़ (Sugar) दोनों भाइयों के नाम पर ही उनके गोत्रों का नाम दिया और कहा कि उनके कुल देवता सर्प हैं, इसलिए नागदेवता की पूजा करें। १२१७ ई० में इन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। ये मूलतः राजपूत थे।६ चित्तौड़ के महाराजा बेरिसाल सिंह सिसौदिया ने भी जिनचंद सूरी से प्रभावित होकर जैन धर्म स्वीकार कर लिया था।२७ इस अवधि में जैन समुदाय की गुजरात में भी अच्छी स्थिति थी। वस्तुपाल और तेजपाल ने अनेक धार्मिक समारोह आयोजित किए थे। इन स्थानों के श्रावक और श्राविकाओं (भिक्षुओं और भिक्षुणियों) की दशाएं सुधारी और विद्वानों को संरक्षण दिये। वल्लभी, जैन धर्म का मुख्य केन्द्र था।८ गुजरात के सोलंकी वंश के शासक जयसिंह सिद्धराज के काल में प्रसिद्ध आचार्य हेमचंद्र सूरी (१०८७-११७२) का उत्कर्ष हुआ। हेमचंद्र दार्शनिक और गणितज्ञ भी थे। उसके उत्तराधिकारी कुमारपाल (११४३-११७३) के काल में सलाहकार नियुक्त हुए। हेमचंद्र के प्रयास से जैन मंदिर का निर्माण तरंगा (Taranga) में हुआ था। हेमचंद्र (जिन्हें उनकी शिष्य मंडली 'कलिकाल-सर्वज्ञ' कहा करती थी) के ही प्रयास से कुमारपाल ने गुजरात में जैन धर्म को राजकीय धर्म घोषित किया और जानवरों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया। हेमचंद्र ने योग के बारे में भी जनता को जागरूक किया। योग पद्धति के बारे में जानकारी का अच्छा स्रोत हेमचंद्र का “योगशास्त्र" है।९ गुजरात के कच्छ (मांडवी)२° के प्रसिद्ध जैन बनिया जगडूशाह, जिन्हें 'सेठ', 'साह-सौदागर', 'दानवीर' की उपाधि प्राप्त थी, ने अनेक धार्मिक समारोह आयोजित कराया था। १२५९ ई० में जगडूशाह ने भद्रेश्वर (Bhadreshwar) जैन मंदिर का नवनिर्माण और हरिसिद्धि के मंदिर को अनुदान दिया।२१ इसके अलावा जगडूशाह को कच्छ में भद्रेश्वर के निकट वसई (Vasai) के ऐतिहासिक जैन मंदिरों के निर्माण और मरम्मत