________________
....: 41
१२वीं से १५वीं सदी के मध्य जैन के पास जैन भिक्षु जंबूजी के जीवनयापन हेतु जमीन दान में दी थी । ६७ उपरोक्त विवरणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि १२वीं से १५वीं सदी के मध्य जैन समुदाय की स्थिति सम्मानजनक थी। उनके निवास का केन्द्र बिन्दु पश्चिम भारत, उत्तरी भारत और दक्षिण भारत में मैसूर था। जैन धर्म व्यापारी वर्ग में लोकप्रिय हुआ। शासकों के साथ जैन सम्प्रदाय के लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के संबंध हुआ करते थे। खिलजी वंश और तुगलक वंश के शासकों के साथ इनके घनिष्ठ सम्बन्ध थे । तुगलक काल में विशेषकर मुहम्मद बिन तुगलक के काल में जैन समुदाय को अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी । सुल्तानों ने उन्हें संरक्षण प्रदान किया, संघ यात्राओं हेतु अनुदान दिया तथा उन्हें शासकीय पदों पर नियुक्ति के साथ-साथ सम्मानित भी किया। दिल्ली सल्तनत में जैन धर्म और जैन साहित्य सुरक्षित रहा और जैन सम्प्रदाय के लोग धार्मिक स्वतंत्रता के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी
१.
क्लासिकल एकाउंट्स ऑफ इण्डिया, सम्पा० : आर.सी. मजुमदार, कलकत्ता, १९६०,पृ० ४२५-४८; ई हुल्त्श, कार्पस इंस्क्रिप्शनम इंडिकेरम, एक, देहली, १९६९, पृ० -५३, ७३।
२.
३.
४.
५.
युवान च्वांग, शी-यू-ची, अनुवाद और टीका: टामस वैटर्स, आन युवान च्वांग्स ट्रैवेल इन इंडिया, ६२९-४५ ए.डी., देहली, १९७३, पृ०- २५७ पुष्पा प्रसाद का लेख, 'द जैन कम्युनिटी इन द देहली सल्तनत', प्रोसिडिंग्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, ५४वां मैसूर अधिवेशन, १९९३, सेक्शन- २ (मेडिवल इण्डिया) लेख क्रम सं०- २९ ।
जियाउद्दीन बरनी, तारीखे फीरोजशाही, (अनु० ) सर सइद अहमद खाँ, बिब्लियोथिका इंडिका, कलकत्ता, १८६२, पृ०- ३१६-१८ हेमचन्द्रसूरी कृत 'त्रिषष्टिशलाका - पुरुष - चरित' में गुरु शिष्य परम्परा का ऐतिहासिक विवरण के साथ सन्यास धर्म, मृत्यु और पुनर्जन्म तथा जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का उल्लेख भी मिलता है । विस्तृत विवरण हेतु देखें- हेलेन एम० जॉनसन, (अनु०), द लाइव्स ऑफ द सिक्सटी श्री इलसट्रीयस पर्संस (बड़ोदा, ओरिएंटल, इन्स्टीच्यूट, १९६२); रिचार्ड फीन्स, (अनु० ) द लाइव्स ऑफ द जैन एल्डर्स, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटा प्रेस, १९९८ ।
६. लेखपद्धति, (अंग्रेजी अनु० ), पुष्पा प्रसाद, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, २००८ प्रभाचन्द्रसूरीकृत प्रभावक चरित, सम्पा० एच०एम० शर्मा, १९०९; जिन विजयमुनि, सिघी जैन श्रृंखला, (एस० जे०एस० ), १९४०; मेरुतुंग कृत प्रबंध चिन्तामणि, सं० जिन विजय मुनि, एस० जे०एस०, शान्तिनिकेतन, १९३३;