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जैन पुराणों में सामन्त व्यवस्था : 29
जिनसेन ने १६ आदि पुराण में भरत चक्रवर्ती राजा की समृद्धि का चित्रण स्वयं करते हुए लिखा है
नानारत्ननिधानदेशविलसत्संपत्तिगुर्वीमिमां
साम्राज्यश्रियमेक भोगनियतां कृत्वाऽखिलां पालयन् । योऽभून्नैव किलाकुलः कुलवधूमेकामिवाङ्कस्थितां सोऽयं चक्रधरोऽभुनक् भुवममूमेकातपत्रां चिरम् ।।
इससे स्पष्ट है कि आदि पुराण का भारत रत्नों, निधियों और सभी प्रकार की सम्पत्तियों से युक्त एक सम्पन्न देश था ।
कुछ विचारकों के अनुसार राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रवृत्तियों के कारण राज्य व्यवस्था का सामन्तवादी ढाँचा मौर्योत्तरकाल और विशेषकर गुप्त काल में प्रारम्भ हुआ।१७ छठीं शताब्दी में विजित जागीरदारों को सामन्त के रूप में व्यवहृत किया जाने लगा।१८ कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी इन पड़ोसी जागीरदारों की स्वतंत्र सत्ता का प्रमाण मिलता है।" मौर्यकाल के पश्चात् इसका प्रयोग पड़ोसी भूमि के औचित्य के लिए किया जाने लगा न कि जागीरदार के रूप में। २१
पाँचवीं शताब्दी में, सामन्त, शब्द का प्रयोग दक्षिण भारत में भूस्वामी के अर्थ में किया जाने लगा। शान्तिवर्मन ( ई. सन् ४२५ - ४७५ ) के पल्लव अभिलेख में सामन्त कुदामानयाः का उल्लेख प्राप्त होता है । २२ उसी शताब्दी के अन्तिम काल में दक्षिणी और पश्चिमी भारत के दानपत्रों में सामन्त का उल्लेख जागीरदार (भूस्वामी) के अर्थ में प्राप्त होता है। २३ उत्तर भारत में सर्वप्रथम इसका प्रयोग उसी अर्थ में बंगाल अभिलेख और मौखरी शासक अनन्तवर्मन के बराबर पहाड़ी गुफा अभिलेख में उल्लिखित है, जिसमें उसके पिता को सामन्त कुदामनी: (भूस्वामियों में सर्वश्रेष्ठ ) कहा गया है। २४ दूसरे यशोधरवर्मन (ई. सन् ५२५-५३५) के मंदसौर स्तम्भ लेख में भी सामन्त का उल्लेख पाया जाता है, जिसमें वह समस्त उत्तर भारत के सामन्तों को अपने आधीन करने का दावा करता है। २५
समराइच्चकहा में सामन्तवादी प्रथा का भी उल्लेख प्राप्त होता है। सामन्त २६ लोग राजा-महाराजाओं के आधीन होकर शासन करते थे। वे करदाता नृपति के रूप में जाने जाते थे तथा राजा महाराजाओं का सम्मान करते थे। २७ सामन्तों के पास अपनी निजी सेना एवं दुर्ग रहते थे । २८ फिर भी वे स्वतंत्र शासक की आज्ञा के विरुद्ध कार्य नहीं करते थे। वाकाटकों के सामन्त नारायण महाराज और शत्रुघ्न महाराज, वैन्य