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जैन पुराणों में सामन्त व्यवस्था : 31 महासामंत, बत्तीस सामंत, एक सौ साठ लघु सामंत तथा चार सौ चतुराशिक (चौरासी) उपाधिधारी होने चाहिए। इन सभी उल्लेखों से स्पष्ट होता है कि समराइच्चकहा में उल्लिखित सामन्त, महासामन्त सम्राटों के अधीन कर दाता के रूप में शासन करते थे, जिनमें महासामन्त का पद सामन्तों से ऊँचा होता था।
सन्दर्भ
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पद्म पु. ३७१/१०। वही ६६/१२। महा पु. २७/१५२; हरिवंश पु. ११/११३-२०। महा पु. २८/४२; हरिवंश पु. ११/१९। पद्म पु. १०२/१२६। वही २/८२। अल्तेकर - राष्ट्रकूटाज ऐण्ड देयर टाइम्स, पूना, १९६७, पृ. २६५; कुमारपालप्रबन्ध पृ. ४२; इण्डियन ऐण्टीक्विट ६,९,१२।। इलाहाबाद स्तम्भ लेख २३; उदयनारायण राय- वही पृ. ६८ आर. एस. शर्मा- भारतीय सामन्तवाद, दिल्ली, १९७३, पृ. १०२/१२६। आर. एस. शर्मा- वही, पृ. २४-२५। अर्थशास्त्र १/६। राजबली पाण्डेय- हिस्टारिकल एण्ड लिटरेरी इन्सिक्रिप्सन्स, नं. १९, १-३। लल्लनजी गोपाल - सामन्तः इट्स वैरिंग सिगमीफिकेन्स इन ऐंसियण्ट इण्डिया, जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी, अप्रैल १९६३। वासुदेव शरण अग्रवाल - हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन, परिष्टि १। आदि. पु. २/३७/१४२-१४३। वही २/७/२०२। आर. एस. शर्मा- भारतीय सामन्तवाद, पृ.२। वही पृ. २४-२५। अर्थशास्त्र १,६। मनुस्मृति ८,२६८-९; याज्ञवल्क्य २,१५२-३। वी. एन. दत्ता-हिन्दू ला आफ इनहेरिटेन्स, पृ. २७। राजबली पाण्डेय-पूर्वोक्त, नं. २९, १-३। लल्लन जी गोपाल- पूर्वोक्त, अप्रैल १९६३। कार्पस इन्सक्रिप्सन्स् इंडिकैरम, ३, नं. ४९, १-४।
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