Book Title: Sramana 2013 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 30
________________ विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ ..... : 23 यहां मन्दिर न०.१ में शान्तिनाथ जिनालय में शान्तिनाथ भगवान की १६ फुट ऊंची खड्गासन मूर्ति संवत् १०८५ (ई०सन् १०२८) की है। मन्दिर न०. ८ में भगवान चन्द्रप्रभ की मूर्ति १२वीं शताब्दी की है। यहां का घंटई मन्दिर १०वीं शताब्दी का है। इस मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा भगवान ऋषभदेव की रही होगी क्योंकि प्रवेशद्वार के ललाट बिम्ब पर गरुडारूढ़ा अष्टभुजी चक्रेश्वरी की मूर्ति उत्कीर्ण है। गांव के दक्षिण पश्चिम में जैन मन्दिरों का समूह है। यहां के हिन्दू और जैन मन्दिरों में वास्तुकला की दृष्टि से समानता पायी जाती है सम्भवत: इसका कारण यह है कि दोनों धर्मों के मन्दिर निर्माता स्थपति एक ही थे। खजुराहो के वर्तमान जैन मन्दिरों में १०वीं शताब्दी का पार्श्वनाथ मन्दिर सबसे विशाल और सुन्दर है। वह ६८ फुट २ इंच लम्बा और ३४ फुट ११ इंच चौड़ा है। यह मन्दिर कला वैशिष्ट्य और अद्भुत शिखर संयोजना की दृष्टि से अद्वितीय है। यहां उपलब्ध १२ जैनमूर्तियों में पार्श्वनाथ, महावीर, जैन मन्दिर के द्वार का सिरदल, जैन तीर्थंकर, नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका अपने दोनों पुत्रों के साथ, तीर्थंकर कुन्थुनाथ, ऋषभदेव, यक्षदम्पति, जैन मातृका, सम्भवनाथ, पद्मप्रभ की शासनदेवी मनोवेगा तथा सर्वतोभद्रिका प्रतिमा उल्लेखनीय हैं। यहां के संग्रहालय के जैन कक्ष में कुल १२ जैन मूर्तियां सुरक्षित हैं। २१. विदिशा- विदिशा के जैन क्षेत्र के रूप में प्रतिष्ठित होने के उल्लेख पुरातात्त्विक अवशेषों के साथ-साथ जैन साहित्य में भी प्राप्त होते हैं। जैन मान्यता के अनुसार उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत ने विदिशा में एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया था। आर्यमहागिरि और सुहस्ति ने विदिशा की यात्रा की थी और यहां प्रस्थापित जीवन्तस्वामी की प्रतिमा का दर्शन भी किया था। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप में इसका विवरण दिया है। रामगुप्त के द्वारा तीन जिनप्रतिमायें यहां स्थापित की गयी थीं। अभिलेख युक्त इन प्रतिमाओं के प्राप्त होने से जैन धर्म के तत्कालीन प्रभाव का पता चलता है। विदिशा के नजदीक उदयगिरि के पहाड़ी पर जो २० गुफाएं हैं इनमें पहली और २०वीं गुफा जैन धर्म से सम्बन्धित है। २०वी गुफा में सन् ४१६ का एक लेख उत्कीर्ण है।१०। २२. दशपुर- दशपुर नगर शिवना नदी के तट पर आधुनिक मन्दसौर से समीकृत किया जाता है। शकछत्रप काल में यह तीर्थस्थल के रूप में विद्यमान था। यह गुप्तवंश और औलिकर वंशीय राजाओं की राजधानी थी। कालिदास और वाराहमिहिर ने भी अपने सायित्य में इस नगर का उल्लेख किया है। जिनप्रभ सूरि ने कल्पप्रदीप में यहां सुपार्श्वनाथ का मन्दिर होने का उल्लेख किया है। यहां के निकटवर्ती कोथडी,

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