Book Title: Sramana 2013 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 26
________________ विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ ..... : 19 जैन पुरातन सामग्री से पता चलता है कि इस क्षेत्र में जैन कला की बहुविध संरचना हुई। इस क्षेत्र में गूडर, गोलाकोट, पचराई अतिशय क्षेत्र भी हैं जिनमें अनेक जैनमन्दिर तथा जैन मूर्तियों एवं मन्दिरों के भग्नावशेष अवस्थित हैं। ७. बजरंगगढ़ -श्री शांतिनाथ दिगम्बर अतिशय क्षेत्र बजरंगगढ़ गुना से ७ किमी. दक्षिण की ओर स्थित है। यह पर्वतमालाओं से घिरा होने के कारण अत्यन्त रमणीक है। यहां का सबसे बड़ा अतिशय यहां पर सेठ पाडाशाह द्वारा निर्मित भगवान शान्तिनाथ की १५ फुट ऊंची प्रतिमा, तथा उसके दोनों ओर कुन्थुनाथ की ११ फुट ऊंची कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित प्रतिमाएं हैं। मन्दिर के सामने मैदान है जो चहारदीवारी से घिरा है। द्वार पर भव्य छतरी है। तीनों प्रतिमाओं के हाथों के नीचे पृथक्-पृथक् सौधर्मेन्द्र और उसकी शची हाथों में चमर लिये हुए हैं। दोनों ओर की दीवारों में पैनल हैं जिनमें तीर्थंकरों की मूर्तियां बनी हुई हैं। इस मन्दिर के अतिरिक्त दो और मन्दिर बजरंगगढ़ में हैं, एक में भगवान की कृष्णवर्ण की प्रतिमा (संवत् १९४९ की) है तथा तीसरा जिनालय जो चोपेट नदी के किनारे स्थित है, को टरका वाला मन्दिर कहते हैं। इस नगर के मूसागढ़, झरखोन, सारखोन, जैनागर आदि नाम भी मिलते हैं। ८. थूवौन- श्रीदिगम्बर अतिशय क्षेत्र थुवौन गुना की मुंगावली तहसील में पार्वत्य प्रदेश में अवस्थित है। इस क्षेत्र से अनेक अतिशय की कहानियां जुड़ी हैं। बौद्ध साहित्य में इसका नाम तुम्बवन प्राप्त होता है जो अब तुमैन है। इस अतिशय क्षेत्र पर मन्दिरों की कुल संख्या२५ है जिनमें भगवान आदिनाथ, अभिनन्दननाथ, अरहनाथ, शान्तिनाथ, चन्द्रप्रभ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की प्रतिमाएं विराजमान हैं। ९. चन्देरी- मध्यप्रदेश के गुना जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित चन्देरी भगवान अजितनाथ के मन्दिरों के लिये प्रसिद्ध रही है। बौद्ध और जैन साहित्य में इस जनपद का उल्लेख मिलता है। यहां की चौवीसी कलापूर्ण एवं तीर्थंकरों के ही वर्ण के कारण बुन्देलखन्ड के तीर्थ-क्षेत्रों में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। संवत् १३५० के आसपास निर्मित यहां के मन्दिर में २४ तीर्थंकरों की पद्मासन-स्थित मूर्तियां हैं। इनमें १६ स्वर्ण की, २श्वेत वर्ण की, २ श्याम वर्ण की, २ हरित वर्ण की तथा २ रक्त वर्ण की हैं। मुस्लिम इतिहासकारों में अलबरूनी ने सर्वप्रथम चन्देरी का उल्लेख किया है? यह प्राचीन काल में जैन संस्कृति का केन्द्र रहा है। १०. खन्दारगिरि- यह क्षेत्र चन्देरी किले के दूसरे तीसरे दरवाजों के बीच चन्देरी से तीन कि.मी. दूर पड़ता है। वर्तमान चन्देरी में कुछ शताब्दी पूर्व बलात्कारगण की

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