________________
..... 17
विन्ध्य क्षेत्र के दिगम्बर जैन तीर्थ ने यहां के मन्दिर को ध्वस्त कर दिया। यहां नवीन जिनालय में भगवान शांतिनाथ की लगभग १६ फुट ऊंची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। इसके दोनों ओर कुन्थुनाथ और अरनाथ की ८-८ फुट ऊंची प्रतिमायें हैं। इसका निर्माणकाल ११वीं शताब्दी है। इसके आस-पास जो अन्य पुरातात्त्विक सामग्री प्राप्त हुई है अथवा अन्य हिन्दू देवी देवताओं की जो मूर्तियां मिलती हैं उससे पता चलता है कि सिहौनिया मध्ययुग में कला की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध था।
२. ग्वालियर- इसे दक्षिण भारत का द्वार कहा जाता है। ग्वालियर दुर्ग में पाषाण शिलाओं में उकेरी हुई लगभग १५०० मूर्तियां हैं। अधिकतम अवगाहनावाली मूर्तियों में खड्गासन में आदिनाथ भगवान की ८७ फुट की तथा पद्मासन में सुपार्श्वनाथ भगवान की ३५ फुट की है। यहां उदयगिरि गुहा मन्दिर से लाया गया एक शिलालेख गुप्त संवत् १०६ (सन् ४३५) का है जिसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा के निर्माण कराने का उल्लेख है। दो अन्य शिलालेख १३वीं शताब्दी के हैं। श्वेताम्बर आचार्य शीलविजय एवं आचार्य सौभाग्य विजय ने इसे बावनगजा बताया है। पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमाओं में यह सबसे विशाल है। ग्वालियर का केन्द्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय यहां के गुर्जरी महल में स्थित है जो इस क्षेत्र की कला और स्थापत्य के अनुपम उदाहरण संजोए हुए है। यहां १३ जैन धर्मशालायें हैं।
ग्वालियर मन्दिर की भव्य मूर्तियां
३. मनहरदेवः श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मनहरदेव ग्वालियर जिले के पिछौर तहसील में एक पहाड़ी पर स्थित एक अतिशय क्षेत्र है। पहाड़ी पर एक जैन मन्दिर तथा तलहटी में भी दो मन्दिर हैं। पहाड़ी पर स्थित मन्दिर में मूलनायक के रूप में सेठ पाडाशाह द्वारा प्रतिष्ठित भगवान शांतिनाथ की १५ फुट ऊंची कायोत्सर्गासन वाली प्रतिमा जो अब सोनागिरि पहुंचा दी गयी है, अत्यन्त मनोहारी है। यहां ११वीं - १२वीं शताब्दी की मूर्तियां उपलब्ध होती हैं।