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16 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013
१२ वीं शताब्दी की मिलती हैं। इन मूर्तियों पर कल्चुरि, चन्देल और प्रतिहार कला का पूरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । इस काल की मूर्तियां रेशन्दीगिरि, बन्धा, अहार, पपौरा, खजुराहो, अजयगढ़, खनियाधाना, घोलाकोट, भियादांत, बीठला आदि क्षेत्रों में प्राप्त होती हैं । १२वीं शताब्दी के उत्तरकालवर्ती मूर्तियां तो प्रायः सभी जगह प्राप्त होती हैं ।
इन क्षेत्रों के तीर्थों की एक विशेषता यह भी है कि कुछ क्षेत्र तो वास्तव में मन्दिरों के नगर हैं। सोनागिरि में छतरियों सहित १०० मन्दिर हैं। इसी प्रकार पपौरा में १०७, रेशन्दीगिरि में ५२, मढ़िया में ३२, द्रोणगिरि में २९, थूवौन में २५ तथा पटनागंज में २५ मन्दिर हैं। भोयरे भी मन्दिरों के ही लघु संस्करण हैं। ये भोंयरे पपौरा, सोनागिरि, रेशन्दीगिरि, आहार, पनिहार, बीना-बरहा तथा बन्धा क्षेत्रों में हैं । '
अभिलेख :- मध्य प्रदेश में अधिक महत्त्वपूर्ण अभिलेख मिलते हैं जो शिलालेख और प्रतिमालेख के रूप में दो प्रकार के होते हैं। सर्वप्राचीन अभिलेख उदयगिरी (विदिशा) के हैं जो गुप्त संवत् १०६ ( ई. सं. ४२५) के हैं। इसके बाद के पांच शताब्दियों तक के कोई अभिलेख नहीं मिलते। गयारसपुर में वज्रमठ जैन मन्दिर के निकट स्थित आठ खम्भों में से एक पर उल्लिखित लेख वि.सं. १०३९ का है जिसमें किसी भक्त द्वारा यहां की यात्रा करने का उल्लेख है। इसी प्रकार खुजराहो के घण्टई मंदिर के दो लेख क्रमशः वि. सं. १०११ और १०१२ के हैं। ग्वालियर संग्रहालय में वि. सं. १३१९ का भीमपुर का महत्त्वपूर्ण लेख सुरक्षित है। प्राप्त सभी मूर्ति लेख ११ वीं शताब्दी के हैं । १३वीं शताब्दी के मूर्तिलेख अहार, चूलगिरि, ऊन तथा इस प्रदेश के विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि विन्ध्य और बुन्देलखण्ड का क्षेत्र सांस्कृतिक सम्पदा से पटा पड़ा है। विशेषकर स्थापत्य और कला के क्षेत्र में तो यह क्षेत्र निःसंदेह अग्रणी क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर को समेटे प्रचीन समय से भारतीय जनमानस पर अपनी छाप छोड़ता आ रहा है।
अब इन तीर्थ क्षेत्रों में पायी जाने वाली पुरातात्त्विक सामग्री को संक्षेप में देना अप्रासंगिक नहीं होगा
१. सिहौनिया - अहसिन नदी के तट पर स्थित यह नगर प्रारम्भ से जैन संस्कृति का केन्द्र रहा है। यहां के राजा सूरजसेन की जैन धर्म में अगाध श्रद्धा थी । १०वीं शताब्दी तक यहां जैन धर्म का प्रचार- प्रसार रहा है उसके पश्चात् मुस्लिम शासकों