Book Title: Sramana 2004 07 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 6
________________ श्रमण, वर्ष ५६, अंक ७-९ जुलाई-सितम्बर २००४ बौद्ध और जैन प्रमाणमीमांसा - एक तुलनात्मक अध्ययन प्रो० सागरमल जैन* जैन एवं बौद्ध प्रमाणशास्त्र का ऐतिहासिक विकासक्रम : जैन और बौद्ध दर्शन भारतीय श्रमण संस्कृति के दर्शन हैं। आचारशास्त्र के सिद्धान्त पक्ष की अपेक्षा से दोनों में बहुत कुछ समानताएं हैं। किन्तु जहाँ तक तत्त्वमीमांसीय और प्रमाणशास्त्रीय विवेचनों का प्रश्न है, दोनों में कुछ समानताएँ और कुछ अंतर परिलक्षित होते हैं। जैन और बौद्ध दोनों ही दर्शन एकांतवाद के विरोधी हैं। दोनों के दार्शनिक विवेचन के मूल में विभज्यवादी दृष्टिकोण समाहित है। तत्त्वमीमांसा एवं आचारमीमांसा के क्षेत्र में बौद्ध दर्शन जहाँ एकांतवाद का निषेध करके मध्यमप्रतिपदा की बात करता है, वहीं जैन दर्शन एकांतवाद का निषेध कर अनेकांतवाद की अवधारणा को प्रस्तुत करता है। इस प्रकार दोनों दर्शनों की मूलभूत दृष्टि अर्थात् एकांतवाद के निषेध में समानता है। किन्तु अपनी दार्शनिक विवेचनाओं के अग्रिम चरणों में दोनों दर्शनों की मान्यताओं में अंतर देखा जाता है। उसका कारण यह है कि जहाँ एकांतवाद से बचने के लिए बौद्धदर्शन निषेधपरक रहा, वहाँ जैन दर्शन ने विधिमुख से अपनी बात कही। जैन दर्शन का चरम विकास उसके अनेकांतवाद और स्याद्वाद के सिद्धांत के रूप में हुआ, वहीं बौद्ध दर्शन का चरम विकास अपनी मध्यमप्रतिपदा पर आधारित होते हुए भी अंतत: विज्ञानवाद और शून्यवाद के रूप में हुआ। - जहाँ तक जैन और बौद्ध प्रमाणशास्त्र का प्रश्न है, प्राचीन जैन आगमसाहित्य और बौद्ध त्रिपिटक में हमें प्रमाणशास्त्र संबंधी विशेष विवेचनाएं उपलब्ध नहीं होती हैं। परवर्ती जैन आगमों समवायांग, अनुयोगद्वारसूत्र और नन्दीसूत्र में ज्ञानमीमांसा की तो विस्तृत चर्चा है, किंतु प्रमाणशास्त्र संबंधी चर्चा का उनमें भी कुछ शब्द संकेतों के अतिरिक्त प्रायः अभाव ही है। इस प्रकार पालि त्रिपिटक और अर्द्धमागधी आगमों में प्रमाणशास्त्र संबंधी छुटपुट शब्दों यथा तक्क, विमंसी, पमाण, हेतु व्यवसाय आदि के प्रयोग. तो मिल जाते हैं, किंतु एक सुव्यवस्थित प्रमाणशास्त्र की उपलब्धि नहीं होती है। बौद्ध परम्परा में सर्वप्रथम नागार्जुन ने लगभग ईसा की दूसरी शताब्दी में शून्यवाद की स्थापना के साथ विग्रहव्यावर्तनी और वैदल्यसूत्र में प्रमाणों का स्पष्ट * मंत्री, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी एवं नियामक, प्राच्य विद्यापीठ, दुपाडा रोड, शाजापुर, मध्यप्रदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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