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१०. संस्कृत रचना : काव्य प्रकाश टीका श्री मोहनलाल देसाईए 'जैन गुर्जर कविओ'मां आपेल उल्लेख उपरथी आ कविए साहित्य चक्रवति लोहित्य भट्ट गोपाल विरचित 'काव्यप्रकाश' पर संस्कृतमा टीका रची होय अम लागे छे. एनी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे.
टीका जयंतमुख्या विलोक्य तत संग्रहं च सासद्य ? सहृदय मुदे प्रयत्नाच्छी गुणसौभाग्यसूरिवरः -इति साहित्य चक्रवत्ति लौहित्य भट्ट गोपाल विरचितयां साहित्य चूडामणो काव्यप्रकाश विमशिन्यां दशम उल्लासः १.
आ सर्व कृतिओ एक साथे अवलोकतां ए वस्तु सहज रीते प्रतीत थाय छे के जयवंत. सूरि मात्र कथनकार के जोडकणां करनार नथी. अमनी पासे कवि उचित कला छे, कसब छे. एमना समग्र सर्जनमांथी, तेओ जैन मुनि होवाने लीधे जैन धर्म अने संस्कारने अनुरूप शुचितानी सौरभ फोरे छे. सादी अने सरळ रीते तेणे आ सर्व कृतिनुं सर्जन कयु छे. पण एमनी आ सरळता मात्र .भभ कना अभावनी नथी, पण स्वभावसिद्ध छे. सरळ शब्दो पासे धायु काम लेनार ते कसबी कलाकार छे एमनी भाषामां गौरख, ऊर्मिलता, मार्मिकता, प्रसाद अने माधुय' छे. एमनी वाणीना प्रवाह अनायस सरळताथी वह्या करे छे. अनुप्रासयुक्त एमनी पक्तिओ राग के देशीना योग्य मापमा सहजतया अक पछी अंक आव्या करे छे. उपमा, रूपक, दृष्टान्त इत्यादि अलकारोना उचित प्रयोग द्वारा तेओ सामान्य उक्तिने पण दीप्तिवंत बनावी मूके छे. अमनी पासे अक विशिष्ट प्रकारनी वर्णन शेली छे. ते शक्ति वडे ते काई पण पात्र, प्रसंग के भावने-स्वभाविकताथी वाचकना चित्त समक्ष प्रत्यक्ष करी शके छे. आ सर्वने कारणे एमनी कृतिओ रुचिर अने आस्वाद्यय बनी छे.
जयवंतसूरि पासे प्रेरणानी जे कांई निर्सगदत्त मूडी छे. अमां अभ्यास अने निपुणता वडे वृद्धि करी एमणे गुजराती साहित्यने 'शृंगारमजरी' अने 'ऋषिदत्ता' जेवी उत्तम अने आकर्षक कृतिओ भेट धरी छे. ए भले प्रतिभाशाळी कवि नथी पण एक सारा 'रासकवि' तो छे ज.
१.. जैन गुर्जर कविओ, संपा० मोहनलाल द. देसाई, मुंबई, १९४४ भाग ३, खंड १, पृ.
७२. परना उल्लेख.
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