Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 54
________________ (४३) संपादना अने यौवन-प्राप्ति, रत्नाकरनी एने योग्य कन्याप्राप्ति अंगेनी चिंता, एटलामां एना परदेश गयेला भित्रनु आगमन, मित्र द्वारा, पोते मंयगला नगरीना जिनदत्त अने शीलवतीनी लीधेल मुलाकातनु वर्णन, शीलवतीनु रूपवर्णन, पुत्रीना विवाहार्थे जिनदत्ते पददेशी मित्र साथे मोकलेल पुत्र जिनशेखर, रत्नाकर द्वारा जिनशेखर सह अजितसेनने शीलवतीने परणवा माटे मंयगला नगरी मोकलवो, अजितसेननु शीलवतीने परणीने स्वनगर पाछा फर इत्यादि, विगतो कवि अति संक्षेपमा तीव्र गतिमे वर्णवी जाय छे. जे कविनी वस्तुने लाघवथी रजू करवानी वस्तुसंकलनानी सूझ दर्शावे छे. आ पछी पण वातां तीन गतिए चाले छे. एकवार मध्यरात्रिए शीलवतीन शीयाळानुं लाणीनु उपश्रवण, तदानुसार पशुपंखीनी भाषाज्ञ शीलवतीनुं नदी किनारे जई त्यांना शब परथी पांच रत्ने। ग्रहण करवा, रत्ने लइने शीलवतीनुं गृहे आवी पूर्ववत् शय्यामां सूइ जवू, शीलवतीना आवरजवरथी जागृत थइ गयेलो अनो पति अजितसेनन एना शील अंगे शंकाशील बनवु अने सवारमा पिताने ते वृत्तान्त कहीने एने पियर मूकी आवव तैयार थq. से बाबतमा रत्नाकरनु संमत थQ अने तदानुसार रत्ना करनुं रथमां बेसाडीने शीलवतीने एना पियर मूकी आववा नीकळवू इत्यादि विगतांशी कविए सीधी वेगीली कथात्मक शैलीमां संक्षिप्तमां वर्णव्या छे. जे कविनी कथनकलानी शक्तिनु द्योतक छे. आ पछी रत्नाकर सह शीलवती रथमां बेसी पोताना पियर प्रति प्रयाणना प्रारंभ करे छे. ते वखते मार्गमां अनेक शुकन थाय छे. अत्रे कवि शकुनोनी एक विस्तृत यादी आदी आपी दे छे. (१४८-१६५) जो के आपणने आजे आ वस्तुसंकलनानी दृष्टिले योग्य न लागे पण ते वखतनो समाज आवा शुकन-अपशुकनमा विशेष विश्वास के श्रद्धा धरावतो हशे मे संदर्भमां आवी लांबी यादी आवे ते स्वभाविक छे. कवि फरीथी वस्तुप्रवाहमा वेग आणे छे. रत्नाकर अने शीलवतीने प्रवास, प्रवास मार्गमां उपस्थित विसंवादो, रत्नाकर अने शीलवतीनुं वटवृक्ष नीचे विश्राम लेवा बेसबु, त्यां करीरना वृक्ष पर बेठेला वायसनी वाणीनु उपश्रवण, पक्षी-पंखीनी भाषाज्ञ शीलवती द्वारा अने उपालभ देवो इत्यादि कथाविगत कवि तीव्र गतिथे आलेखे छे पण पछी कवि वायसवाणीना गुण-अवगुण विषे, वायस अंगेना शुकन-अपशुकन अंगे शुकनशास्त्र प्राप्त दसेदीशाना शुकनो प्राय: २९ दूहभां (२१८-२४६) वर्णवे छे. ते स्थाने कवि शुकनावलि अंगेर्नु पोतानुं ज्ञान श्रोताना लाभार्थे ठालवी देता होय अम लागे छे, छतां ते प्रमाणभान दाखवे छे. बादमां काव्य फरी वेग पकडे छे. शीलबतीनो वायस साथेनो संवाद सांभळी रत्नाकरनी ते अंगे पृच्छा, पृच्छाने अंते प्राप्त माहिती अनुसार वृक्ष नीचेथी दश लाखनो निधि प्राप्त करवो इत्यादि प्रसंगो कवि अति संक्षिप्तमां शीन्न गतिए आलेखी जाय छे. जो के आनी मध्यमां पण कवि सामान्यज्ञान निर्देशक दूहाओ आपवानी वृत्ति रोकी शकता नथी (३२८-३२७) ते पछी कवि कथाविगतने झडपथी निरूपता काव्यने आगळ धपावे छे. शीलवतीने पाछी फरेली जोई अजितसेने करेल काप, रत्नाकरे शीलवतीना पूर्व कार्य अंगे करेलो खुलासो अने पंदरकाटी द्रव्य प्राप्तिनी लाभनी कहेल वात, ते सांभळी अजितसेनना कोपनी शांति थवी, रत्नाकर अने अजित. सेननुं शीलवतीने पूर्व करेली भूल बावत 'खमाववु' इत्यादि प्रसंगो कवि शीनगतिले मात्र ३० कडीमां [३४६-३६६] आपी दे छे जे कविनो प्रमाणभान के सयमना गुणने सूचवे छे. अही कथा प्रवाहनो अक तबको पूरी थाय छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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