Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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२०६
जयवंतसूरिकृत
वालहां ग. विरहइ माइख ग. न विलइ घ. नवि लजाई १४११. ग. नी(सा)सो उजागरो
ख.ग. अंकुरा १४१२. प्रत 'ख' अने 'ग' अने 'घ'मां आ पछीनी त्रण कडी ऊलटकमे छे. पण अत्रं ग्रंथपाठमा क्रमे पाठान्तर नेांध्या छे. १४१३. ग. तत्त अतत्त स्यु ग. सद्धि सद्धि मलाइ १४१४ प्रत 'ख'मां आ कडी नथी ग. झूर कोई ग. संसारि न अपणा १४१५. अख.ग. पक्षि स कसाय १४१७. ख ग. सय-हाणि १४१८. अ.ग. लागसु, ग. लागसी १४१९. ग. हमारत १४२० ग उंचा आंबा १४२१. ग मागइ आडि करी अ.ख.ग मरेय १४२३. ग.घ. रे हेडा १४२५.ग. बिरह-दोहिलो ख. चांखियां; ग. चाख्या ग. थोडिल १४२६. ग. मरकल डि हसइ १४२९. ख. देवि ग. देव सरज्यु'; ग. हाय १४३०. अ.ख.ग. सुपनं रि १४३६. अ.ख. विचि: ग. विचिं १४३७. अ.ग. मिलसिउ घणू १४३८. ग. जागइ बोलाइ १४३९. अ.ख. मयण-खट्रकइ होय ग. मयण खटके होय १४४०. अ.ख दुनि-जन घ. काया कू ची ग. तादु कीजई १४४२. ग. अंगो अंगि मूरखां १४४३. अ.ग.घ. जेह सुख अ. मोर गि नाचइ गाजतां ख ग. मोर नांचइ १४४४. अ.ख ग. कहाय १४४६. ग. परदेशडई गयाइ १४४८. ग. वेश्या १४४९. ग. विरलां जांणई १४५०. दष्ट अदष्टनि ग. लहइ १४५१. अ.ग. दहेय १४५२. ख. खट्कइ; ग. खट्रकई १४५४. ग. करि विमांण १४५५. ग. अधिकुं स्यु करइ १४५६ ग. कसो ग. ते थाओ १४५७. अ.ख.ग. दशाननि दश शर नीगम्यां १४५८. ग. वलि मे प्रांण १४५९. ग. प्रांणि धरई १४६० ग. जां लगई ते न मिलंति १४६१. अ.ख. कोऊ जलिइ; घ. कोऊ ग. जलई अ.ग. उल्लावि; ग. ऊल्लावि १४६२. ग. बलतू लइ ग. तनुं कंपाइ अ.ख.ग. अण-वेचि ग. जीणि माइ १४६३. खग. जिण जाणि जमता ख सि नि जे वेघड ग. सु नि ज वेघडो १४६४ ग. बाहिरइ १४६५. अ.ग. चंदु ग. दहइ १४६६. ग. रहिं तो माहरा अ.ख.ग. छाइ १३६७. अख ग. उपारजन १४६८. ग ऊल्लसइ ग. अहींइ किस्यो संदेश १४७१. ग. वलि वइंरी स्यु मंडीइ १४७२. ग. कमलि नई वेघडई ख.ग. सहीय घ. वालाहां १४७३. ग. परवस रहइ ग. मूंकि विझगयंद १४७४ ग. किंहिं ग रमइ अ. नेहडइ अ.ख.ग. मयल्लपणू १४७७. घ. अधि घडी १४७८. अ. पटलडई; ग. पटओलडई १४७९. ग्रंथपाठमां प्रत 'ख', 'ग', 'घ'मां वधारानी कडी आ प्रमाणे छे. प्रत : ख.-ऊज्जल पणीय जिम ससिकला, दिनि दिनि वाधिं सोय, तेहवी उत्तम प्रीतडी, विवरयां खलि होय
१४६० प्रत : ग-उत्तम पणय जिम ससिकला, दिन दिन वाधिं सोय.
तेहवी उत्तम प्रीतडी, विखरीयां खलि होय. १५०८ प्रत : घ.-ऊजल पणि मि जिम ससिकला, दिन दिन वाघि सोइ.
तेहवी उत्तम प्रीतडी, विवरीया खलि होय १४६१
१४८०. ख. अक ग. किं १४८२. अ ऊखडिउ; ख. ऊखडिउं ग. उखडणुं ग. भव सवि १४८५. ग. सरि धर्या १४८६. केरो ठांम ग. जाणु' अभिराम १४८७. ग. खहावी खास १४८८ अ.ख.ग. खप ज(प) १४८९. ख. उन्च्छा हुई १४९०. ग आग
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