Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 284
________________ शृंगारमंजरी २०९ अगवूठइ'; १६७०. ग. मि. ग. जेहवो चंबा-छोडि. १६७२. ग. पई टेली काच कुण. १६७४. क. सोकडि १६७५. ग. आखडीआ आंलंबडो १६७७. अ.घ. फलिया १६६८. ख.ग. जांइ तुझ विण अख. मिलविउ. १६८०. अ. माटि तुहनि १६८१. ग. माग्यउं दीजइ १६८२. ग. अंदोह १६८३. अ.ख ग घ. खू टी १६८४. अ.ख ग. सलोय १६८५. ग. न मराय ग. मांना आपणू १६८६. ग, सहिजई नन्मणां १६८७. ग. ताडो अवडो ग. रयुं न करसि १६८९. ग. तुं मुझने १६९०. ग. जीभि किम दिन वीसरइ १६९१. अ.ख.ग. जे तुझ ग. नामइ १६९२. अग. हूँ कीर १६९३. क. संसरि १६९४. ग. पालव्यो १६९५. अ. तरसाल्यां १६९६. ग. तोरई पगे पडु ग आरति हुइ १६९८. ग. मोह्यो १६९९. ग. वलन का न दे १७०२. अ. भाद्रवडि, ग. भाद्रवडे १७०३. ग. बली-हारडी १७०४. क साथ १७०६. अ.ख.ग. मूहि १७०७. ग. जांणि जिहां १७०८. ख. तन मन धन १७१३. ग दृधि स्यु १७१४. अ ग. आंबां लागां इखूइ १७१६. ग मन मलि १७१७ ग. नयणे कीधो क. भेय ग. भांजी लजया १७२०. ग मरवो अक ज वसं १७२१. क कद्दन लंबी ग. नहि विस्या १७२३. अ.ख.ग. च्यार १७२४. अख. रचीइ १७२५. अग हंसा किं; अ. मानसरि १७२७. घ. निर्गुण सिउं १७२९. ख. कां बलडी १७३१. सगुणां संगति कीजई १७३२. ग. कीधो नवो सनेह; घ. नवउ सनेह १७३३. ग. चडि प्रमाणि क. सुजाण; अ.ग सुजांणि १७३४. ग. पालवई १७३५. ग. तोरई कारणइ ग. करें रखे १७३६. ग. तो मइ मंड्यो नेह ख. म थासि; ग. म थास १७३७. ग. न होई घ. नुहि हंसु क. निवगुण १७३८. ग. जेडि अ.ख. ऊधांण; ग. उधांन; ग. ऊधाण १७३९. ग. पालई घणो सनेह १७४१. ग. ते तो लीजई क. जनम तण व्यवहार; ग. जनम तणो व्यवहार १७४२. अहीं प्रत 'अ', 'ख' अने 'घ'मां वधारानी कडी नीचे प्रमाणे छे. प्रत 'अ'-जु घट मांटी के डु, जोई लीजइ सुवार, माणस सरखा रतननु, जनम तणु व्यवहार. १७२५ प्रत 'ख'-जु घट सांटी केरड, जोइ लीजई सुवार, माणस सरखां रतननु, जनम तणुं व्यवहार. १७२४ प्रत 'घ'-जउ धउ माटी करडु, जोई लीजई सुवार. माणस सरखां रतनसु, जनम तणु व्यवहार. १७१'.. ग. मन औरतो ग. बिपरिं दहसिं १७४३. अग. जिम वि न हसई लोय १७४४. ख. खरो तो जाणिस्यु ग. पालेस्व १७४५. अ.घ. नेह रय तिम १७४६. अ. ऊपजइ; ख ग. ऊभ जई घ. उतजसि १७५०. घ. ओसिं तूं सुजाण १७५१. ग. जे हस्यु बाघो १७५२. ख. साथि सु जू मन मिलिग. साथिं मुझ मन ग. कहांई अ ख. तुझ सिउ मलिउ जे नेहलु १७५३. घ. सहसि अनोत्तर ग. मिलई १७५५. ग. अंगीकर्या १७५६. अ. बीहीजइ सइ; ग. बहीजइंसि; घ. बीह जसेई ग. जो मंडी सई १७५७. अ.ग. वाहलां अ.ग. थंभि १७५८. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ख.ग.घ. लाजहं प्पमह कयु ख.ग, गणयन नाडी ख.ग सुचित्ता [प्रत ख.ग.घ.मां आ कडी समजावा माटे समजुति आपवामां आंबी छे जे नीचे प्रमाणे छे. [प्रत 'ख'मां आ रीते आकृति आपी समजुति आपी छे ) अमक रोम आपुपुओ मपूउहचि स्वाविअज्येमूपुउ श्रधशपउरे । लड़जेति, अयार्थ लजाकारकः का मिलनु परम्पर विरोध । यत्र मा न तत्रे दयंत्रेहं न तत्र २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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