Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ Jain Education International परिशिष्ट 6 शृंगार मंजरी' अन्तर्गत उक्तिओ, कहेवतो अने रुढप्रयोगो १. मुरख सरसी गोठडी, पगि पनि सालइ साल (९३ ३१४ ) २. मंड के र्टि सिउं करइ, नवलख माती हार ( ९५1१1२) ३. कीधां करम न छूटीइ रे, कुहुनु कीधउ सेोस ( १२७] ३ ! ४ ) ४. आप- हाणि नइ जण हसू, तु बि-परि नवि होइ (१२९|३|४) ५. गुण विण सींगणि जव हवी, तव नवि लगइ बाण ( १३१1३1४ ) ६. अमीअ कि मीठु स्युंड करइ, जउ वासीउ विसेण ( १४३ | ३ | ४ ) ७. सुख दुख केरी बांधणी, सहू करमनई हाथि ( १८६३४) ८. करम साथइ कुणइ नावि चलई, कीजइ किस्यु रे संवाद (१८९ |३|४) ९. सार विण सूकइ वेलडी, उगी सूनइ रानि ( २०२/१२) १०. साना केरी भालड़ी, पाणी मांहि म नाखि (२०३1१1२ ) ११. घाणी - पीलण सहइ घणु रे, सेलडी जगुण मठ रे (२५०1३1४ ) १२. वालु जो पस्मिल दीइ रे, तु छेदावइ मुरवु रे (२५१1३/४ ) १३. कर कांकणनइ स्युं मकर द रे (२६०३२) १४. मन-भगां कुब्रे|लडे, ते किम कहु संघाइ (२६५1३ 1४ ) १५. अगनि उलाणी फूंकतां, मुह भराइ छाहारि ( : ७१1३ 1४ ) १६. वन दव दाघां रुखडां, पीलवर मेहेण (२७५/३/४ ) १७. शीतल कीडं जल तापवी, नीरस हुइ परिणाम ( २८२ ३ | ४ ) १८. छाहारिं दप्पण मइली, अधिकु उज्ल भाव ( २९४ | ३ | ४ ) १९. पाहाणि - रेखा प्रीतडी, अशनि सम रीस हे । इ ( २९५ ३/४ ) २०. छेह लगइ नवि उतरइ, राता कांबलि रंग ( ३०४ ३ ४ ) २१. वरि कारेली आप धरि, नहीं पर मंडप द्राख (३२५1१1२) २२. सीता दुधइ सिउ मिली, कुण करसइ वखाण (४६७ ३ | ४ ) २३. जस मन बाबु जेहमिउं, तेहनि तेह सुचंग ( ४७३ ३ ४ ) २४. चंचल गति संसारनी, कुहनु धरीइ शोक | ४९११३४ ) २५. गुण संभारी सहु रडड़, सगपणि न रडइ कोइ (४०७६२) २६. वीज तणू अजूआलहू, न रहइ ते चिस्काल ( ४९९ | ३ | ४ ) २७. अस्थिर सिउ मन परहरी, स्थिर स्युं कीजइ नेह (२०५ ३३४ ) २८. नयण समाणी प्रीतडी, जगि विरलानइ होई (६२११२ ) २९. सघलई गुण वाहाला जि छई, सगू न वाहा काइ ( ६९५१३४ ) ३०. सोनइ सामि न हुइ किमि, मरुथल न हुई पंक (७१७१२) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308