Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गारमजरी
ढाल ४०,
राग रामगिरी राजन विमासो चतडइ रहितु, वनिता न दोठो अति विहसि थयु. २०४२ जो रे भाइ कुणि रे धूतारडइ घूतु, मोरी मोरी वाहाली लेइ परदेसडीइ पहुतु...दुपद राजन प्रधानई इसिउ कहावइ, कोइ कोइ वोर छइ जे धूरत नइ लियावइ. २०४३ जो. सेवक सहू जोइ भूमिहर पीठो, माहि रे जोतां जोतां सणगडी दीठी. २०४४ जो. बोलइ रे राजन नि सेवक स्वामी, एक दुख चिंतडइ नइ विस्मय पामी. २.४५ जो. राजन सा उलखी नही रे जोती मोटी मोटी घूरतडी जे तुमने वहाती. २०४६ जो. पडइ रेम पहामी दोउ राजन बोलइ, दाधा रे उपरि वली लूणडा तोलइ. २०४७ जो. एकनू कूच बलइ एक दोवडु खूलइ, एक मनि दुख दहइ एकनइ रे दूलि. २०४८ जो. राजनजी नीजामानि कहइ रे विचार, प्रवहण सज करु मलाउ वार. २०४९ जो. नीजामा कहइ नहीं भेखज-गोली, जे क्षणमां सज हुइ रे वहिली २०५० जो दिवस घणेरडे ए सज थाइ, तेतले दिहाडे परदीडिं रे जाइ. २०५१ जो.
ढाल ४१
राग मारुणी- धन्यासी वचन सुणी विलखु थयु, चितइ चतुर भूपाल रे, अणइ धूरति हूं वंचीउ, कीधउ गरव विशाल रे. २०५२ राजन चिंतइ चितडइ, है है अधिर संसार रे, मि जाणिउं सहू माहरु, ठालु हउ अहंकार रे... दुपद माया ममताई नडिउ, माहार माहारु करी देखइ रे, जां रस पहुचइ जेहनू, तांते तेहनि लेखिइ रे. २०५३ रा. सगपणिं वाहालू को नथी, वाहालु स्वार्थि प्राणी रे, नमरू छ डइ फलनइं, परिमलनु क्षय जाणी रे. २०५४ रा. ते जउ माहारो नवि हवों, मंहनइ वाहालो हती अपार रे, तु माया कुण उपरइं, धरीइ एणइ संसारि रे. २०५५ रा. मनवइं रागिइ पूरीउं, नाणिउ मोह लगार रे, एहवइ चारण केवली, पुहुता सुर परिवार रे. २०५६ रा वृष्टि हवो विण आभले, इष्ट काहउं वैघि रे, जेहनई निसि-दिन साभरतां, तेहजि: मिलीयांसहजि रे. २०५० रा. कुलटा चरित सुणी करी, राइ संयम लीध रे, सत्तम दिनि केवल लही, कालक्रमइ ते सीध रे. २०५८ रा.
इति पातालसुंदरी संबंध.
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