Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
5jगारमंजरी
राजा मानी वचन प्रधाननू, पुहुता राजसभाह, ते पण पूछइ च्यारे मोकल्यां, धाती मंजसह माहि. २३२८ जो. भरी य सभामां जव मंजूसडी, ऊघाडी जोइ भुप, तव ते दीठा काल कंकालडा, अति विकीराल विरुप २३२९ जो. कांइ भयथी कांइ विसमयि, काइ प्रीति-प्रभावि, राजा जोइ च्यारे यक्षनि, क्षणि अनिमेष स्वभावि. २३३० जो. उनमेख चंचल तनु मन रोमथी, दीसइ मानव-चिह्न, अति कौतुहल विस्मय पर थकी, तस बोलावइ नरिंद. २३३१ जो. ते पणि च्यारइ कामिनि बोलथी, बीहता लज्जावंत, किमपि न बोलइ सम्यग जोअता, उलखिया राइ हसंत. २३३२ जो. विस्मय लज्जा प्रीति विखादथी, पूछिया राइ सामंत, लाजंता पणि सचिवि निवेदीउ, रायनिं सरव वृत्तंत. २३३३ जो. जेहवू कीधू तेहवू पामीउं, स्वामी अहमेइ लोकि, शीलवतीना शीलनी वर्णना, कीधी परिखद लोकि. २३३४ जो. राजन सचिवई स्त्रीनई खमावीउं, आपिउ पूरव-धन्न, ते प्रतिबोधी च्यारइ सचिवनइ, दीधा परनारि-नीम. २३३५ जो. अहवइ तिणि पुरि मुनिवर परवरिया, पुहुता धर्मघोष सूरि, वंदणि पुहुता अजितनइ रायजी, अवर सु नागर भूरि. २३३६ जो.
ढाल ४९
राग मारुणी (माजी रे पाछा वीर गोसांइ, मे देसी ) सहि गुरु वाणी-रस विस्तारइ, जिम प्राणी सुख पावइ रे, जेहवी साकर दुधइ मिलइ, परिखद नइ मनि भावइ रे. २३३७ प्राणी कांइ चेतु रे दोहिलु मनुष्य-जंवारु रे, तु हो माया ममता वारु रे, कांइ आप सवारथ सांरु रे. २३३८ तुह्मो करथी रयण महारु रे, संसार-सायर छइ खारं रे, अतु दोहिलई लहिउ ऊवारु रे, कांइ सबल पुण्य वधारो रे. २३३९ कांइ हइडा सिउं अवधांरु रे, ए तु पापी मयण-धूतारु रे, मनथी मोह ऊतारु रे, भगवंत ध्यान संभारु रे...दुपद लाख चउरासों योनइं भमीउ, तुहइ न लाधु पार, निगोद तणां दुख दोहिलां, वेया अनंतीवार रे, २३४० प्रा.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308