Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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- अयवंतरिक्त
चंदन कुसमि ते अति चरचोंया, कीधा कीधा यक्ष समान, ये हूं मागू ते तुह्मनइ आपयो इम कहों थापिया घर माहि. २३१६ चि. को नर अवरनि देखतां, म करसिउ मेमोन्मेष, पछइ रे महेलसि तुह्मनइ मोकला, एहवी दोधी रे शीख. २३१७ चि. एहवू रे कहीनइ मंदिरि जूजूइ, राखिया च्यार प्रधान, छांनी रे नीपाइ सवे रसवती, सीखव्या अतिहिं सुजाण. २३१८ चि.
ढाल ४८
राग मेवाडु धन्यासी ( सहिजि सलूणी रे कोश्या कामिनो, अ देशी ) एहवी रे जाणों मति कामिनि तणी, हरखिउ अजित प्रधान, मंदिर तेडी आव्युं रायनई, गुणवंति बुद्धि-निघान. २३१९ जोउ जोउ कामिनि मति सोहामणी, शीलइ सीता समान, गुणवंति गोरी गंग सरीसडी, गोरी चंपक-वानि...दुपद नाही धोइ आसन मांङीयां, जिमवा बइठउ रे राय, जे जे जोइइ भोजन भावतां, ते ते दइ यक्ष राय. २३२० जो. राजा साहामे च्यारे ऊरडे, साहामइ काइक अंधारि, च्यारे देखइ यक्ष सोहामणा वंछित पूरणहार. २३२१ जो. राजन चिंतइ गुह्यक एहवां, वंछित पूरणहार, जउ हुइ अहवा मंदिर माहरइ, तु मुज सफल जंवार. २३२२ जो. ते एक चिंतनि राय मनि वीसरिउ, च्यारे सचिवनू नाम, भोजन कीधू सूनइ चिंतडइ, अक जि तेहनइ ध्यानि. २३२३ जो. भोजन अंतरि राजन ऊठोउ, आपियां बस्त्र-आभर्ण, राजन मागइ च्यारइ यक्षनइ, ज्जा छाडी रे मन्न. २३२४ जो. अजित कहइ तब वनिता सीखविउ, राजनजी सुणु अख, किम नबि दीजइ मुडुडइ प्रार्थीउ, वली निज प्रभूनि विशेख. २३२५ जो. अथवा स्वामिनि सवि ताहरु, हूं पणि ताहरू वियोगि, घिरि पधारु स्वामी आपणइ, अहनुं मिलसइ योगि. २३२६ जो. पणि ए स्वामी च्यारि मंजूसमां, खेपीउ पदा करेसि, भरी सभा भांते ऊघाडयो, उछव करी सविसेस. २३२७ जो.
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