Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 273
________________ १९८ जयवंतरिकृत ग. तो सिवि म रोसि वलसडो (तो सिम रोसि म वसलडो) ७४४. अ. पयड है। ग. पयडई हैंई ७४५. पा. प्रेम-गहिलां इणि अ. परि; ग. परि ग. मनावइ सो वार ७४७ आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ७४९ क. जीलतां ७५०. अ. न सके ख विच्छोह, ग. विच्छोहो ७५१ अ. उनइ; ख. उनइओ: ग. अनइओ ७५३. अहीं प्रत 'अ', 'ख', 'ग'मां अत्र वधारानी अक कडी आ स्माणे छे. प्रत 'अ' ठालो दि हृका रडा, सूना बोलई बोल, कहिसिउ नवि बोलिउ गमइ, सान गइ निटोल. ७३३ प्रत 'ख' टाला दि हूंकारडा, सूना बोलई बोल, कहिसि नवि बोलिउँ गमइ, सान गइ निटोल ७४९ प्रत 'ग' ठाला दि हुँकारडा, सूना बोलई बोल. कहि स्युं नवि बोल्यु गमइ, सान गइ निटोल. ७६० ७५५. अ. भूई; ग भुई. ग. नीठई ७५८. अ. धूया; ग. धूया ग. देहिं देह अ. उल्हाइ; ख.ग. उल्हाई ७५९. अ. त्यिजता अग. अधर-रस ग. नवयौवन ग. छांडता ग हैं न फाटई कांई ७६०. ग. विछोह्यां ७६१. ख.ग. मणुअ-भवि ग. जो देखाइसि छेह ७६३. ख.ग. मणुअ ग. सवि ७६४. ख. विरहि न लई हूँसु थसई ७६५. ग बोलई न हसई रमं ग. हैडई करि विखास ७६६. अ. मुहडि बोल ग. मुंहडि ग. सकई ७६९ ख. अप! ७७०. ग. कई अपमान्यो अ दुहविउ कबोलि; ग. दूहव्यो बोलि ग. मार्यो नयनि विश्रल. ७७१. ख.ग. मनि-दुख अ. मज; ग. मुझ. ७७३. ग वज्रघात ख.ग. आपणि. ग. वरी ग. चालीसई ७७४. ग. तेणे ग. मुझ ग. थयो अ. हेइडि ग. हइडई अधिको अ. हवि ग. केतई मिलस्यु हवई अ. थयु ग. तुज स्यु थयो ७७५. ग. मेहलंती ग. सांन गइ धरणी ग. हुइ नीरास ७७६. अ. वाघि; ग. वाधि ग. सु लहर. अ. ग उघाण, ग ऊघांण अ भागु आस्या-वहाण ग. आस्या-वाहाण ग. सायर ७७७. ग. पर्सया वीसर्या ७७८. अख.ग आस्या-डाल ७७९. अ वलि ग. साल नवि माई ७८१. अ. प्रीछवि; ग. प्रीछवि ग. जिम इद्र-जाल अग. विसराल; ख विरराल ७८३ अ.ग. सरिज्या ख ग. दुख तणा अ. विहाय; ग. विहाई ७८४. अ.ग. हल्लहल्ल ग. विरहई शीलवती-हीई ७८५. ग प्राण हरइ अ. जासि; ग. जासि. ७८६. ग. कमल बंधाणो भमरलो ग. उग्यो वछि ७८७. ग. विरहीओ ग वंछसि मित्त ७८८. अ. (स)सि सूरनि; ख. ससि सूरनि; ग. सूरनई ग. प्रीउ जासई ७८९. घ. रयणी मू ७९०. अत्रे प्रत अ.ख.ग.मां नीचे प्रमाणे वधारानी बे कडीओ मळे छे. प्रत 'अ' कागा कूकड वीनवू , रखे करतो साद, प्रहिवसी रवि ऊगति, प्रीउ जासि परभाति. ७७० रे सही उठि उतावली, प्रगट थयु प्रभात, चूढि आकासि अरीसड, मोतीडानी भाति. ७७१ प्रत 'ख' कागा कुकड वीनवू', रखे करता साद, प्रहिवसी रवी उगतई', पीउ जासि परमाति. ७७० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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