Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 239
________________ १६४ जयवंतसूरिकृत जिम प्रिय विरह करालीउ, चकवु धण-अंधारि, खिणि खिणि समरइ सूर्यनइ, तिम हूं तुह्म संसारि. २२२४ जिम अति तरसिउ पंथीउ, उन्हालइ भर लूइ, वंछइ सजल सछाय सर, तिम वंदू तुह्म हुइ. २२२५ मानस सरोवर हंस जिम, भमरा जिम कमलाई, मेह संभारइ मोर जिम, तिम तुह्म गुण समरांइ. २२२६ गयवर समरइ विझ जिम, कोइलि समरइ अंब, तिम समरूं हूं तूंहनइ, समरइ भमर कदंब. २२२७ धन वंछइ दारिद्रीउ, भख्यु वंछइ अन्न, पंथो वंछइ छांहडी, तिम तुह्मनिं मुज मन्न. २२२८ सुरभी समरइ वछनई, कोइलडी मधु-मास, तिम समरु हूं तुहनि, चंद चकोर विलास २२२९ घणउं कहूं सिउ कारिमू, सम कोधउ सिर होइ, तू अंक समय न वीसरिउ, थोडाइ घणू सजोइ. २२३० भूलि वासी अंत्य-विण, रत-कलहइं ते होइ, ते बि केवल तुह्य कन्हई, घणउं कहइं सिउं होइ २२३१ सजन तणा सनेहडा, वीसारिया नवि जाइ, जिम जिम विरह घणेरडु, तिम तिम अधिका थाइ. २२३२ सजन संदेसइ ताहरइ, नयणे की उ संतोस, कोऊ लागी भोंतरइं, हैडा करी संतोस. २२३३ रे सज्जन गुण ताहरा, जउ लख-जिहवा थाइ, कोडि वरीस जीवी धरु, तुहइ कहिया न जाइ. २२३४ अक्षर बावन गुण घणा, केता लिखीइ लेखि, थोडइ घणुं करी जाणयो, सुख होसइ तुह्म देखि. २२३५ जीवित थोडू मणूय-भवि, चडता पडतो दिन्न, विचि विचि रयण अंघारडउं. तम गुण लिखड किम्म. २२३६ भूमंडल कागल करूं, सायर सवि मसि थाइ, सवि डूंगर कांठा हवइ, तुह्म गुण तुहि न लिखाइ २२३७ सवि अंबर कागल हवइ, गंगा-जल मिसि होइ, जउ सुर-गुरु तुह्म गुण लिखइं, पार न आवइ तोइ. २२३८ तुह्म गुण ऊजल-दूध जिम, मिसि अति क ली होइ. एहवू जाणी चितडइ, लेख न लिखीउ तोइ. २२३९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308