Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१६२
जयवंतसूरिकृत
सज्जन नामि तुझारडइ, हुइ अति संतोष, पणि तुज मुख निहालिया विनो, किमहि न छीपइ सोस. २१९२ वाहालेसर एक तुज विना, क्षण वरसां सु थाइ, दिन जाइ अति झूरतां, टलवलतां निसि जाइ. २१९३ गुणवंत अति वल्लहां, वसियां ते हैया मझारि. ते नवि जाइ वीसारियां, जां काया परिहार. २१९४ अन्न विशेख हय बल्लहा. सीयालइ हुइ वन्नि, तस आदइ 'इ' कार करि, ते तुह्म पासि सुजन्न. २१९५ जे ऊगइ वाविया पछी, तिणिं नामि जस नाम, तिहां नयणां मेलावडउ, करसइ चंद सुजाण. २१९६ विवार य छप्पय वास, अंत्यक्षर तस छेहि, ते सज्जन एक तुज विना, मुजनइ दहइ अति देहि. २१९७ सज्जन अति सभरित भरिसं, मुझ मन तुह्म गुणेण, अवगुण पइसी नवी सकइ, तुह्म वीसारु जेण. २१९८ रे सज्जन गुण तुह्म तणा, दहइ जिम खइर' अंगार, नवि लब्भइ जिणि उल्हवउ, अवगुण नीर लगार. २१९९ सज्जन विरहई तुह्मारडइ, मुज मनि कोऊ जलंति, चोली चरणा चीरडां, टीपिटीपि गलंति. २२०० तुह्मनइ समरु राति-दिन, वहूं ते मनह मजारि, तुहि न हुइ समाधि मुज, दीठा विण एक वार. २२०१ मुनि मन विण सूर सर विना, अह पीडइ मुज देह, एकवार सज्जन मिली, तू वि नेवारे तेह. २२०२ वार वार तुह्म वातडी, वार वार तुह्म चीति, तुह्म दरशनि ऊमाहलू , फलसइ कहींइ मींत. २२०३ ध्यान तुह्मारु चितडइ, गुण सुणि सवण संतोस, नामि पवित्र स जीभडी, दो नयणां धरइ सोस. २२०४ अनुदिन समरु हइडलइ. निसि-दिनि तोरु जाप, नयणि न देखं तुह्मई, ते कांइ पूरव पाप. २२०५ हृदय-कमलि एक तूं रिउ, गंथी तुझ गुण-माल, श्रेय-मित अभिधान तुज, जपतां जाइ काल. २२०६ केतू लिखीइ लेखमां, के तूं कहूं एक मुक्खि, तूंहजि जाणइ वेदना, तु ज विरहइं जे दुक्खु. २२०७
१. खरइ.
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