Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 230
________________ शृंगारमंजरो ढाल ४५ राग भीली मल्हार ( समोसरण बइठा श्री जिनवर, ए देशी) एक लख टंका लेइ आवु, जउ अह्य सिउ हुइ काज रे, लाल, जे अति विसमां दोहिलां, द्रव्यइ सीजइ काज मेरे लाल. २०९६ सुंदरि बुधई आगली, कामिनि सगुण सुजाण मेरे लाल, च्यार नई प्रतिबोधवा, सियां सियां करई विनाण मेरे लाल...दुपद आज थिकी दिन पांचमइ, निसि अंधारा पूरि मेरे, दूती-वयणि ते तेडीया चिहारइ, जूजूह प्रहुरि मेरे. २०९७ सू. धरि खणावी उरडइ, अति एक खाड मेरे, ते उपरि एक अणवणो, वस्त्रि ढांकी खाट मे० २०९८ सू ऐक लख लेइ पहिलु आविउ, यामिनि पहिलइ पुहुरि मे० द्रव्य लेइ खाटइ बइसारिउ, तव ते पडीउ विहुरी मे. २०९९ सू. इणि परि च्यारे चिह ए पहरे, पडीया विबर मझारि मे. वेलू विवरई पाथरी, ते अनुकंपा माटि मे० २१०० सू. नरक तणी परि विवरई पडीया, च्यारे ते निज पापि मे, किमहि न सकइ नीसरी, है है विषय-संताप. २१०१ सू . दोरइं बांधी श्रावलू, मेहलइ जल आहार मे थोडे दिहाडे तेहनु, टालिउ विषय-विकार मे. २१०२ सू. दुहा सचिब पडिया ते विवरमां, जुरइ निज निज दोस, सुंदरि प्रीउ गुण सांभरी, हइडइ आणइ सोस. २१०३ सजन-गुण जव सांभरइ, तव मन दुखि भराइ, सरोवर जिम आसाढथी, बेहु कंठइ पुराइ. २१०४ सज्जन गुण तुह्यारडा, जिम जिम समरइ चित्ति, तिम तिम हैडुं आवटइ, नयणां गलइ जडित्ति. २१०५ सज्जन गुण संभारतां, काया परबसि थाइ, हैडई डीबु जामीइ; नयणे नीर न माइ. २१०८ इंणि अवरि मेह आवोइ, विरही केरु काल, बापीडु पीउ पीउ करइ, वरतिउ वरखा-काल. २१०७ वरसि म वरसि म महला, पायई सांमल थाइ, आदिइ वइर सलूण-जल, सही सलूण विलाई. २१०८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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