Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 234
________________ शृगारमजरी सखी उवाच, कथं शीलवती प्रेमासव मद धारियां, सुद्धि न होवइ तेह, आखर सुघा लेखमां, जाणू सिथिल सनेह. २१४५ दूत उवाच गोरी गहिली कां थइ, जे समरइ निसि-दीस, ते सूधूजइ तेहनई, मनथी छांडे रीस. २१४६ जिम तरसियां सरोवर लहिउ, मनि आणंद-सुधाइ, सुजन संदेसा सांभली, हैअडइ हरख न माइ २१४७ जिम रयणायर चंदनइ, नेह सदूरि ठियांह, तिम दूरि ठिय सज्जनह, गुण सल्लइ हैयांह. २१४८ वली वली पूछइ वत्तडी, अवर न वात सुहाइ, संदेसु जिम जिम सुणइ, तिम तिम ऊलट थाई. २१४९ सजन-संदेसु लखलहइ कागल कोडि लहंति, दीठ कोटी-शत लहइ, संगमि मूल न हुंति. २१५० सजन दीठिं सुख जेतलू , ते हुइ कागल देखी, लाख जोयण वाहाला वसइ, नितु नितु मिलवू देखि. २१५१ लियावइ दूरि संदेतडु, छांनु कागल दूत, जेहसिउं बोली न सकोइ, तेहसिउं लेखि वात. २१५२ कागल वांची कामिनी, अधिक हवी ससनेहि, ऊवेली वली वलो जोइ, जिम बापीडा-मेह. २१५३ कामिनि कंतह कारणि, वलतु लेख लिखंति, लेखइ बाधइ नेहडु, अधिकी हुइ खंति २१५४ अथ शीलवती अजित प्रति प्रत्युत्तर लखि छइ. स्वस्तिश्री सोहामणउ, वाहालेसर गुणवंत, कंत-संदेसु वांचयो, गोरी लेख लिखंति. २१५५ सानंदइ सस्नेहपणइ, वीनवू छउं श्रेयोत्र, अहीनू तेह जणाविवू, कंता कार्यचात्त. २१५६ यत आंहां खेमकुशल छइ, ते तुझे चरण-पसाई, तहींना कुशल जणावयो, जिम अह्यनि सुख थाइ. २१५७ अपरं दिवस सघणे लेख तुह्य तणउ, पुहुतो एक आहाइ, सर्व समाचार जाणीउ, हर्ष हवु मन माहि. २१५८ सज्जन लेख तुह्यारडई, भागु विरहनु सोस ओक मन जाणइ माहरु, जे मुज हवु संतोस. २१५९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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