Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 232
________________ गारमंजरी सुणी डोल नीसाण कि गयणिं गाजतां रे गाजतां रे, ऊनइ आविउ मेह कि चिहुं दिसि गाजता रे गाजतां रे, खडहड सणीड अपार कि झबकड गोरडोरे गोरडी रे. वलगी रहइ पीउ-कंठि कींगारइ मोरडी रे मोरडी रे. २५१७ आवी पहिली काल कि, विरही वयणले रे वयणले रे, पछइ मेह आवंत कि वरखा गयणले रे गयणले रे, दोडे रही जोइ वाट कि गोरी नाहनी रे नाहनी रे, जोइ जोइ थाकी आंखि कि शृध्धि न नाहनी नाहनी रे. २११८ हूं निस दिन झूरी मलं, ते जाणइ जगनाथ, नीठर कंत न मोकलइ, कागल कुहुनइ हाथि. २११९ कागल पडी अनोंठडी, कइ मिसि ढली अशेष, कइ लेखण कटकइ थइ कंत न भेजिउ लेख. २१२० माणस आणइ नेह तां, जां दीसइ नयणेण, थोडा पालइ प्रोतडी, परदेसडइ गोण. २०२१ गाढी प्रीति ज वीसरी, परदेसडइ वसत, जिम अंजलि जलनी परइ, टीपे टोप गलंति. २१२२ लाज न आणइ नयणी, केतां माणस नोंच, तु ते परदेसइ गयां, सिउं संभारइ प्रोति. २१२३ अणइ अवसरि तव अजितनइ, जागिउ दुख अपार, दिवस घणा थया विण मिलिं, कही मिलसिउं किरतार. २१२४ विरहानलि अति आकलु, जाणइ कहीइं मिलेसि, लेख लिखो पीउ पाठवइ, गोरी छइ जिणि देसि. २१२५ अथ अजितसेन शीलवती प्रति लेख लिखइ छइ. स्वस्ति श्रीवर वीनवई, बाहली छइ जिणि देशि. सुंदरि सुगुण सुजाण छइ, वांचइ लेख-संदेश. २१२६ कुशलखेम छइ मूंहनइ, गोरो धरये चित्ति, तिम करये जिम आपणी, अधिकी वाघइ प्रीति. २१२७ लेख संदेश न मोकलं, अता दिवस मझारि, ते दुख मुजनइ अति दहइ, जिम करवतनी धार. २०२८ गोरी तइं का टाली, संदेशा-व्यवहार, दास किसिउ अह्मारडउ, माया तिजी अपार २१२९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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