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जयवंतसूरिकृत
श्रावणि गुहिर गंभीर कि जलधर धडहडइ, रयणी घोर अंधार कि बीजली खडहडइ, वरसणि लागा मेह कि जीउडु तडफडइ. पनि० भींतरि खाट कि आंसू-जल वडइ. ११२६ भाद्रवि भरीया नीर कि भूई चीरवली, झरमरि वरसई मेह कि झूरइ सामली, एक गोरी दूजा मेह कि दोइ जडि लाइयां, पनि वासइ मधुरइ सादि कि रांन कलाइयां. ११२७ पावस पंथी काल कि गयणि अंधारिया, वाया शीतल वाय कि मोर कांगारीया, जिउं जिउं वरसइ मेह कि वीज स धडहणइ, पनि० गोरी थइ अचेत कि तिउं तिउं भूइ पडइ. ११२८ आपसु नाम तणों पारे कथीअ न वीसरइ, सूतां पीउं नीद मांहि कि कबही बीसरइ, दाधइ लूण तणी परि पीउ पीउ सांभरी, पनि असल सलावइ साल कि बप्पीहा वली वली. ११२९ आया आसो मास कि सम दिन-रातडी, रोइ रोइ थाकी आंखि कि हुइ रातडी, आया अपनई मंदिरि पंथी खलभली, पनि नाया सज्जन सोइ कि जल विण दुबली. ११३० कत्ती मास सुमास कि आया हे सखी, कत्ती मास की अवधि न जाणु विहि लिखी, कात्ती मास मेलापक करुंगी सुनु सहो, पनि० दिन दिन को ए वेदन न सकू हूं सही. ११३१ हलूइ हलूइ पालि कि नेहली सरवरे, निरमल हूआं नीर कि शालि सुमंजरे, सजन सरिसा एह शरद सुहाइया, पनि दुरियन नीपरि काहि कि हम कू भाइया. ११३२ मागसरि मास रसाल कि आस सवे फली, पीउ की जोयु वाट कि विरहिं आकली, लाल न हइ परदेसि झूरइ सामली, पनि० वइरी कू ए वेदन म हिसिउ वली. ११३३
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