Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ (१३ ) ली है।दे॥२॥ पामर नीच अधम जन आगै नाचें दे दे ताली है । दे. ॥शा पदमा पतिको रूपधारक मांगें फेरै थालीहै।दे ॥४॥ 'वनें मात पितु जिनजी के ये बात अभे वाली है दे॥५॥जम्बू रूप बना के नांचे कैसी. पडी प्रनाली है.|दे०॥६॥ पुत्र पिता को करें अनादर प्रीत.सुसुर संग पाली है।। दि०॥७॥ खारीलागें वहिन भानजीप्यारी लागें साली है । देव॥ ८॥ माता सों कहें काम काजकर मेरीवहू अरवाली है. देव॥१॥ लहा.साठ बरषका दुलहिन पांच वरष की लालीहै ।।दे॥११॥ जान बूझ निज कन्या को दें अंध कूपमें डालीहै।दे०।११नारीधरम करणमें लाजेंचरितरचे चरिताली दे१२।

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