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ज्ञान भान सम खुलें शास्त्र की कडी कडी ।। रिद्ध अचिंती होय उत्पन्न रहे सव- बात बडी ॥ जनम मरण भव व्याधि भयँकर भेटन तप औषधि अकसीर ॥ त० ॥ २ ॥ तप परिचय परतक्ष जगत में तप पसाय त्रिभुवन पतिथाय ॥ तप प्रभाव से पूज्य पद पायो हर केशी मुनिराया। द्रढ प्रहार तस कर तप सेती सदगति पामी कर्म खिपाय ॥ अर्जुनं माली लही पंचम गति तपही के सुपसाय ॥ करम काठ काटने कुठार सम तप तपिये साहस घर धीर ॥ तः ॥ ३ ॥ नवकारसी
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आदि ले बरसी तपकी सरघा उर धरियै ।। शक्ति प्रमाणे बनें सोही तप क्षूमा सहित करियै । नरतन चिंता मणि समपा के ममत भाव