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॥ ७ ॥ क्रोध कियां दुख लहै न उसको ॥ वजे विश्व में ढोल कुजसको ॥ इम जानी शमरस को प्यालो पीजिये होराज ॥ ३० ॥ ॥ ८ ॥ श्रीयुत सुगुरु मगन मुनि ध्याई माधव कहै सुनों चितलाई || सब जगको सुखदाई बात कहीजिये होराज ॥ ३० ॥ ॥ ९ ॥ इति ॥
॥ पद राग सोरठ ॥
८. ॥ मान न कीजै हो चतुर सुजान ॥ || मान विनय सुरतरु काटन को। कातिल जान कृपाण ॥ सुजश शशी की कला निरोधन || परतख राहु-समान ॥० ||१|| मान किये अपमान है नर | आना ' गुण ज्ञान । उप
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