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(४४, जारी ॥ सुध मन शील अराध्यां होस्यो। भब भब में मुखियारी ॥ कहै माधव सुवि चारी ॥ पा• ॥ ७ ॥ इति ।।
अथ पद राग चलत सोरठा। ॥ इह भव परभव में दुख दाई क्रोध न कीजिये हो राज ॥ टेर ।। क्रोध समान न बैरीजी को॥ तन में रहै दहै तनही को। वाधक सुरग पुरी को श्रवण सुनी जिये होराज ॥ ३० ॥ १॥ क्रोध समान न विष - जंग माहीं । जस पसाय सुध बुध रहै नांहीं ॥ संकट सहै सदाही प्रति छिन छीजियेहो राज ॥ ॥२ ॥ क्रोध कियां नर कालो थावै ॥ निज पर को पीड़ा उप