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( १३ ).
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खाई ॥ कृत्य कुकृत्य न देखे कोई ॥ करे कुकर्म अघाई || लो० ॥ ६ ॥ अति को लोभ न कीजे प्राणी ख्वारी पेख पराई || 'लोभ पसाय लखो सागर गयो सागर मांहिं समाई || लो० ॥ ७ ॥ पूरव पुण्य विना श्रम कीर्ये पाँवै न एकहु पाई ॥ 'इम जानी' मन थिर चित आनो पुण्य करो उतसाई ॥ लो• ॥ ८ ॥ सुगुरु मगन सुनि पद कज पर सत जावे पाप पलाई || निर्लोभी मुनि को मुनि माधव वंदे शीस नबाई || लो० ॥ ९ ॥ इति ॥
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.१ अगस्त २ मेघ ३ खजानो ४ कपट ५ स्तंभ