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( १२ )
वृक्ष को मूल कह्यो मुनिराई ॥ पुण्य पयो दधि शोषण कारण कुभोद्रवकी नाई। लो | ||१|| प्रगट प्रभाकर रोधन नीरेदसमये थाई ॥ ग्रसन विवेक शशी को राहू देखो दृष्टि लगाई || लो० ॥२॥ कूड़ को कोष कलेश को कारण दर्भे की दीर्घन टोई । लाज लता उत पाटन गज सम क्यों न तजोरे भाई || लो ||३|| सूक्ष्म लोभहू है दुख दायक होय उदै जब आई || एका दश में जीव ठाण से देवे प्रथम पठाई ॥ लो• ॥ ४ ॥ जिम जिम लोभ होय तिम तिमही लोभ बढती जाई॥ दो मासे के काज कपिल गयो कोटि से तृपति न पाई | लो० ॥ ५ ॥ लोभी विषम विदेश में जावै गिनेना गिरि बन