Book Title: Shrimadvirayanam
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ ॥ लावनी॥ । समझ मन माया दुख दाता । माया के परसंग पलक में टूट जाय नाता ॥ ॥टेर ॥ कुंगतिः युवति गले माल मोह गज साल लखो भ्राता ।। सत्य सूर्य के . अस्त करण को संध्या समख्याता ।स। ॥ १ ॥ कूड केल घर कुमति कोठरी धरम हरम ढाता।। कसिन व्यसन उपजन की धरणा बरणी है. ज्ञाता. ॥ स० ॥३॥ भय विभ्रम की खान करे पुम्बेद तनी घाता॥ निवड कपट करणे से प्राणी पशु शरीर पाता ॥ स.॥३॥ अविश .: वास को थानक ही दुरध्यान जनन माताः .. रे मन मूरख शोच कपट कर को पायो . . U .

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57